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________________ PAARAANAVRAN (त्रीस्तुतिपरामर्श.) धर्मकीर्तिमूरि बडे आलीमहुवे, उनोने संघाचारवृत्ति फायदे आमजैनसंघके बनाइहै, कोइ नयीबात जारी नहीं किई. (४) ॐ (दरबयान-महाराजश्रीसत्यविजयजीका.) प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (८) पर बयानहै संवत् (१७२१) में सिंहमूरिने सोलह शिष्योंकों उपाध्यायपद दिया, और सत्यविजयजीकों पंन्यासपद दिया, इससे रिसाकर दूसरे गछके रुलियार यतियोंसे मिलकर कापडिकमत पैदाकिया, परंतु यतियोंका जौर होनेसें कापकिमतकी दिप्ति-न-हुई, (जवाब.) कौन कहताहै महाराजश्रीसत्यविजयजीनेकापडिक मत पैदा किया ? बल्कि ! उनोने धर्मकी तरकी किई, जिनकी बदौलतं आजभी तरक्की होरहीहै, महाराजश्रीसत्यविजयजी बडे आलीम और फाजिल हुवे, उनोने किसीसे नाराजहोकर कोईबात इख्तियार नहीकिई, वे-जैनशास्त्रोंके पुरे माहितगार थे, कौन कहताहै उनकी वरक्की नहीं हुई, बल्कि ! खूबहुई !! और देखलो ! इसजमाने भी होरहीहै, महाराजसत्यविजयजीका जैसा नाम था वैसेही उनमे गुणथे, तारीफ करो उनकी जिनोने शिथिलाचारको हठाकर अपने आत्माकों धर्मपर पावंद किया, (५) ( बयान महाराजश्रीरुषविजयजी और __ वीरविजयजीका,) श्रामण्यरहस्य पृष्ट (७) पर महाराजश्रीरुपविजयजी-वीरविजयजीका जो बयानहै उसके जवाबमें मालूमहो-वे-आलादर्जेके कवि
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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