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________________ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) जारी नहीकिई, जो बात कदीमसें चलीआतीथी उसीको बयान फरमाइहै, शुरुसमयचक्रमें तीर्थकर रिषभदेव महाराजके वख्तसें आजतक जैनमें चारस्तुतिपढते चले आये, प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (७) पर तेहरीरहै कालिकाचार्यजीने चौथकी सवत्सरीकरनेका मत चलाया, (जवाव.) कौन कहताहै कालिकाचार्यजीने चौथकी संवत्सरीकरनेका मत चलाया ? जो बात शास्त्रोंमें दर्जहो उसकों नयीबात कौनकहसकताहै, ? ( कल्पसूत्र में खुला पाठहै,-) अंतरा-विय-से-कप्पई, (टीका) अर्वागपि पयूषणायां कल्पते परं-न-कल्पते-तां-रात्रिं भाद्रपदशुक्लपंचमीरात्रि-अतिक्र मयितुं, ___ पंचमीके पेस्तर संवत्सरीकरना कल्पे-पंचमीकोंभी कल्पे, मगर पंचीके बाद-छठ-या सप्तमीवगेराकों करना-न कल्पे, सबुतहुवा चौथकी संवत्सरीकरना-खिलाफहुक्म तीर्थकर गणधरोंके नही, कालिकाचार्यजीमहाराज जैनमजहबमें बतौर आफताबके होगये, उनोने कोइ नयामजहब जारी नहीं किया,.. प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (७) पर दलीलहै धर्मकीर्तिमरिने चार स्तुति स्थापन करनेकेलिये संघाचारवृत्ति बनाई, इनोनेही चार स्तुतिका पुनरोद्धार किया,. (जवाब.) कौन कहताहै धर्मकीर्तिमरिने चार स्तुति जारिकिई ? जोबात कदीमसें चलीआतीहो उसका स्थापन-या-पुनरोद्धार कोई क्यौं करे ? चार स्तुति तीर्थंकरोके वख्तसें चलीआतीहै, आचार्य
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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