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________________ गुरु-शिष्य दादाश्री : लाभ होगा ही न, लेकिन उसे! ऐसे सीधी तरह से नहीं किया, परंतु उल्टी तरह से भी किया न! नेमीनाथ भगवान को नमस्कार किया न! तब वह तो ऐसा है न, यहाँ इतने छोटे-छोटे बच्चे होते हैं, उनके माता-पिता कहते हैं कि, 'दादाजी को जय-जय कर।' परंतु बच्चा जय-जय नहीं करता। फिर जब बहुत कहें न, तो अंत में ऐसे पीछे रहकर, घूमकर जय-जय करता है। वह क्या सूचित करता है? अहंकार है वह सब! उसी तरह भीम को भी अहंकार था, इसलिए इस तरह घड़ा रखकर भी किया। फिर भी लाभ तो ज़रूर हुआ उसे। हाँ, परंतु सचमुच ऐसा चला था! उस समय नेमीनाथ भगवान जीवित थे। प्रश्नकर्ता : अर्थात् वे प्रत्यक्ष थे? दादाश्री : हाँ, वे प्रत्यक्ष थे। प्रश्नकर्ता : इसलिए कुल मिलाकर तो उन्हीं की भजना की। दादाश्री : हाँ, परंतु उन्होंने नाम से और स्थापना से आराधना की नेमीनाथ भगवान की! प्रश्नकर्ता : परंतु घड़े को हम गुरु बनाएँ, तो वह जड़ पदार्थ हो गया न? दादाश्री : ऐसा है न, इस दुनिया में जो आँखों से दिखता है वह सारा ही जड़ है, एक भी चेतन नहीं दिखता है। __ प्रश्नकर्ता : आपको कोई सवाल पूछे और आप जवाब देते हैं, वैसे घड़ा तो जवाब नहीं ही देगा न? दादाश्री : घड़ा जवाब नहीं देगा। परंतु गुरु बनाकर आप यदि गुरु को भटका देनेवाले हों, बाद में आप बिगाड़नेवाले हों, तो गुरु मत बनाना और आप हमेशा सीधे रहनेवाले हो, तो गुरु बनाना। मैं तो सच्ची सलाह देता हूँ। फिर जैसे करना हो वैसे करना। बीच रास्ते में काट डालो तो बहुत जोखिमदारी है। गुरु का बीच रास्ते में घात करना, इसके बदले तो आत्मघात करना अच्छा है।
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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