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________________ ८२ गुरु-शिष्य दादाश्री : खत्म हो गया और ऊपर से विरोधी बन गया। प्रश्नकर्ता : तब इसमें किसकी भूल है ? दादाश्री : जिसे उल्टा दिखता है न, उसका दोष! उल्टा है ही नहीं कुछ इस जगत् में। बाक़ी, जगत् तो देखने-जानने जैसा ही है, दूसरा क्या? उल्टा और सीधा आप किसे कहते हो? वह तो बुद्धि अंदर उसकाती है। प्रश्नकर्ता : परंतु उल्टा और सीधा देखनेवाले का दोष है, ऐसा आप कहते हैं न? दादाश्री : हाँ, वह बुद्धि का दोष होता है। हमें समझना चाहिए कि यह 'उल्टा-सीधा', बुद्धि दोष करवाती है । इसलिए हमें इससे दूर ही रहना चाहिए। बुद्धि है तब तक वैसा करेगी तो सही, परंतु हमें समझना चाहिए कि यह किसका दोष है! अपनी आँख से उल्टा दिख जाता हो तो हमें पता चलता है कि आँख से ऐसा दिखा ! सन्निपात, तब भी वही दृष्टि ज्ञानीपुरुष को या गुरु को या किसीको भी पूजा हो, कभी यदि उन्हें सन्निपात हो गया हो न, तब वे काटने दौड़ें, कारें, गालियाँ दें तो भी उनका एक भी दोष नहीं देखना । सन्निपात हो गया हो तो, गालियाँ दें तो, वहाँ कितने लोग धीरज पकड़ेंगे वैसी ? यानी कि समझ ही नहीं है वैसी । वे तो वही के वही हैं, लेकिन यह तो प्रकृति का चेन्ज है। किसीको भी, प्रकृति तो सन्निपात होते देर ही नहीं लगती न ! क्योंकि यह शरीर किसका बना हुआ है ? कफ़, वायु और पित्त का बना हुआ है। भीतर कफ़, वायु और पित्त ज़रा बढ़ जाएँ कि हो गया सन्निपात ! गुरु - पाँचवी घात आज के इस पंचम आरे (कालचक्र का एक भाग) के जो सारे जीव हैं, वे कैसे जीव हैं? पूर्वविराधक जीव हैं । इसीलिए गुरु में जो प्रकृति के दोष के कारण भूलचूक हो जाए तो उल्टा देखते हैं और लोग विराधना कर डालते
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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