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________________ ५८ गुरु-शिष्य प्रश्नकर्ता : कुछ गुरु कहते हैं कि अभ्यास करो तो वस्तु मिलेगी। दादाश्री : हाँ, वह तो बहुत सारे लोग ऐसा ही कहते हैं न! क्या कहेंगे? 'यह करो, वह करो, वह करो।' करने से कभी भी भ्रांति जाती है? गुरु के कहे अनुसार करना ही हो, तब तो वैसा हो ही नहीं न? किसीने कहा हो कि, 'आज सच बोलो।' पर सच बोला ही नहीं जाता न? वह तो पुस्तकें भी बोलती हैं। पुस्तक कहाँ नहीं बोलती? उससे कुछ होता नहीं न? पुस्तक में कहते हैं न, कि 'प्रमाणिकता से चलो।' पर कोई चला है? लाखों जन्मों तक वही का वही किया है, दूसरा कुछ किया ही नहीं। तोड़फोड़, तोड़फोड़, तोड़फोड़ ही की है। बरते उतना ही बरतवा पाए गुरु के पास जाएँ तो वहाँ हमें कुछ भी पालन करना ही नहीं होता। पालना हो तो हम उसे नहीं कहें कि 'तू पाल भाई, मैं कहाँ पालूँ? पाल सकता तो तेरे यहाँ मैं किसलिए आया?' अब नहीं पाला जाता उसका कारण क्या है? यह सामनेवाला व्यक्ति जो पालन करने को कह रहा है, वह खुद ही नहीं पालता। हमेशा गुरु पालन करते हों वहाँ शिष्य अवश्य पालते हैं। बाक़ी, यह बनावट है सारी। फिर वापिस गुरु हमें कहते हैं, 'आपमें शक्ति नहीं है, आप पालते नहीं हो।' अरे, मेरी शक्ति किसलिए तू ढूँढ रहा है? तेरी शक्ति चाहिए। इन सबसे मैंने कह दिया है, 'मेरी शक्ति चाहिए। तुम्हारी शक्ति की ज़रूरत नहीं है।' और बाहर सब तरफ तो वैसा ही है! जहाँ गुरु बन बैठा हो, उसे उसकी खुद की शक्ति चाहिए। पर यह तो लोगों पर उंडेल देते हैं कि, 'आप कुछ नहीं करते!' अरे भाई, कर रहा होता तो तेरे यहाँ मैं क्या करने आता फिर? तेरे यहाँ किसलिए आ टकराता? पर यह तो कलियुग के लोगों को समझ नहीं होने से यह सब तूफ़ान चल रहा है। नहीं तो मेरे जैसा जवाब दे देगा न? गुरु यदि चोखे हों तो हमें अवश्य हो ही जाता और नहीं होता तो गुरुओं में ही पोल है। हाँ, एक्जेक्ट पोल है, यह मैं आपको बता दूँ! पोल का अर्थ मैं क्या कहना चाहता हूँ? कि गुरु अकेले में बीड़ी पीते हों तो आपकी बीड़ी नहीं छूटेगी। नहीं तो क्यों नहीं होगा? एक्जेक्टली हो ही जाना चाहिए। सभी गुरुओं का पहले रिवाज ही यही था। गुरु अर्थात् क्या?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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