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________________ गुरु-शिष्य ५७ उसे? नौकरी में भी कोई रखेगा नहीं। अब इसमें क्या हो? न तो गुरु का महात्म्य रहा, न ही शिष्य का महात्म्य रहा, और पूरा धर्म बदनाम हुआ! शिष्य को मात्र करना है, विनय __ वर्मा, गुरु के आधार पर तो कितनी ही जगह पर शिष्य होते हैं। शिष्यों की पूरी चिंता उस गुरु के सिर पर होती है। इस तरह से शिष्यों का चलता रहता है। कुछ सच्चे गुरु होते हैं संसार में, और कुछ शिष्यों का गुरु के सिर पर बोझ होता है, और गुरु जो करें वह ठीक। इसलिए जिम्मेदारी नहीं और शांति रहती है। कोई आधार तो चाहिए ही न! निराधारी मनुष्य जी नहीं सकता। प्रश्नकर्ता : तो वहाँ शिष्य को कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं? दादाश्री : शिष्य तो, वह बेचारा क्या कर सकता है? वह यदि कर सकता तो फिर गुरु की ज़रूरत ही नहीं रहती न? शिष्यों से, खुद से कुछ भी नहीं हो सकता। वह तो गुरु की कृपा से सब आगे ही आगे बढ़ता जाता है। मनुष्य खुद अपने आप कुछ भी नहीं कर सकता। प्रश्नकर्ता : कृपा गुरु की चाहिए, पर शिष्य को भी करना तो पड़ेगा न? दादाश्री : कुछ भी नहीं करना है, सिर्फ विनय रखना है। इस जगत् में करने को है ही क्या? विनय करना है। क्या करना है? यह कोई खिलौने नहीं खेलने या घर के देव स्थान की मूर्तियों को स्नान कराना नहीं है, ऐसावैसा कुछ भी नहीं करना है। प्रश्नकर्ता : परंतु खुद को फिर कुछ भी करना नहीं है? गुरु ही सब कर देंगे? दादाश्री : गुरु ही कर देंगे। खुद को क्या करना है? प्रश्नकर्ता : तो फिर गुरु किस तरह पहुँचाते हैं? दादाश्री : गुरु उनके गुरु के पास से लाए होते हैं, वह उसे देते हैं। आमने-सामने सब, वह तो आगे से चला आया है। इसलिए गुरु जो दें, वह शिष्य को ले लेना है।
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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