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________________ गुरु-शिष्य होने में बीच में कैफ बाधक है। योग्यतावाले दूरी बनाए रखते हैं। वह कम योग्यतावाला हो न, वह तो ऐसा ही कहेगा, 'साहब, मुझमें तो अक्कल नहीं है, अब आपके सिर पड़ा हूँ । आप हल ले आइए। ' तो फिर सद्गुरु खुश हो जाते हैं। उतना ही कहने की ज़रूरत है। सद्गुरु और कुछ नहीं माँगते हैं या और कोई योग्यता खोजते नहीं हैं । हैं न? ४३ सद्गुरु को सर्व समर्पण प्रश्नकर्ता : सिर्फ सद्गुरु की भक्ति ही होनी चाहिए, वही कहना चाहते दादाश्री : अर्पणता चाहिए, पूर्ण रूप से । प्रश्नकर्ता : सद्गुरु के प्रति संपूर्ण समर्पण भाव से रहें तो? दादाश्री : तो काम हो जाए । समर्पण भाव हो तो सारा काम हो जाए। फिर कुछ भी बाक़ी रहेगा ही नहीं । परंतु मन-वचन-काया सहित समर्पण चाहिए। प्रश्नकर्ता : वैसा समर्पण तो, भगवान श्रीकृष्ण अथवा भगवान महावीर की कक्षा के हों, तो ही वह समर्थ कहलाएँगे न? या फिर चाहे किसी भी साधारण को बनाएँ तो भी चलेगा? दादाश्री : वह तो आपको वैसे विराट पुरुष लगें तो करना । आपको लगे कि ये महान पुरुष हैं और उनके सभी कार्य वैसे विराट लगें, तो हम उन्हें समर्पण करें। प्रश्नकर्ता : जो महानपुरुष हो गए है, हज़ारों साल पहले हो गए है, उन्हें हम समर्पण करें, तो वह समर्पण किया कहलाएगा? अथवा उससे अपना विकास होगा क्या? या प्रत्यक्ष महापुरुष ही चाहिए? दादाश्री : परोक्ष से भी विकास होता है और प्रत्यक्ष मिलें तब तो कल्याण ही हो जाता है । परोक्ष, विकास का फल देता है और प्रत्यक्ष के बिना कल्याण नहीं होता ।
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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