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________________ ४२ गुरु-शिष्य की कामनावाले को देर लगेगी, कितने ही जन्मों तक भटकना पड़ेगा। आपको समझ में आया न? किसकी कामना है? मान - पूजादि की कामना ! ' आइए, आइए, आइए सेठ!' कहते हैं । गर्वरस चखते हैं । वह स्वाद चखना भी रह जाता है न लोगों का ! उसे चखने का मज़ा भी कुछ ओर ही आता है न! सद्गुरु मिले, वही योग्यता प्रश्नकर्ता : सद्गुरु मिलने के बाद सद्गुरु के आदेश के अनुसार साधना तो करनी पड़ती है न? दादाश्री : साधना, उसका अंत होता है। छह महीने या बारह महीने होता है। उसमें चालीस - चालीस वर्ष नहीं चले जाते । प्रश्नकर्ता : वह तो जैसी जिसकी योग्यता । दादाश्री : योग्यता की ज़रूरत ही नहीं है । यदि सद्गुरु मिल जाएँ, तो योग्यता की ज़रूरत नहीं है । सद्गुरु नहीं मिले हैं, तो योग्यता की ज़रूरत है। सद्गुरु यदि बी.ए. हुए हों तो उतनी योग्यता और बी. ए. बी. टी. हुए हों तो उतनी योग्यता। उसमें अपनी योग्यता की ज़रूरत ही नहीं होती । प्रश्नकर्ता : इस दुनियादारी की योग्यता नहीं, लेकिन इसकी योग्यता तो अलग है न? दादाश्री : नहीं । सद्गुरु मिल गए, तब किसी योग्यता की ज़रूरत नहीं होती। सद्गुरु मिल गए, वही उसका बड़ा पुण्य कहलाता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन सद्गुरु मिलने के बाद कोई साधना करनी ही नहीं होती? मात्र सद्गुरु से ही पूरा हो जाता है? दादाश्री : नहीं, वे साधन बताते हैं वही सब करने होते हैं। परंतु योग्यता की ज़रूरत नहीं है। योग्यतावाले को तो मन में ऐसा होता है कि, 'अब मैं तो समझता ही हूँ न!' योग्यता तो उल्टा कैफ चढ़ाती है। योग्यता हो तो फेंक देने जैसी नहीं है, वह हो तो अच्छी बात है । लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि कैफ हो तो कैफ निकाल देना चाहिए। उस योग्यता और सद्गुरु का मेल
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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