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________________ ३८ गुरु-शिष्य वहाँ अपनी अक्कलमंदी का उपयोग नहीं करें, और गुरु के प्रति सिन्सियर रहें। जितने सिन्सियर हों, उतनी शांति रहती है । गुरु तो हम यह स्कूल में पढ़ने जाते हैं न, तब से ही गुरु की शुरूआत हो जाती है, तो ठेठ अध्यात्म के दरवाज़े तक गुरु ले जाते हैं । लेकिन अध्यात्म में प्रविष्ट नहीं होने देते । क्योंकि गुरु ही अध्यात्म ढूँढ रहे होते हैं । अध्यात्म अर्थात् क्या? आत्मा के सम्मुख होना वह । सद्गुरु तो हमें आत्मा के सम्मुख कर देते हैं। अर्थात् यह है गुरु और सद्गुरु में फर्क ! वैसे गुरु मिलें, तो भी अच्छा यह तो, लोग गुरु को समझे ही नहीं हैं । हिन्दुस्तान के लोग गुरु को समझे ही नहीं कि गुरु किसे कहा जाता है? जो भी कोई भगवा कपड़ा पहनकर बैठा हो तो यहाँ लोग उसे 'गुरु' कह देते हैं । शास्त्र के दो-चार शब्द बोले इसलिए उसे अपने लोग 'गुरु' कह देते हैं, परंतु वे गुरु नहीं हैं । एक व्यक्ति कहता है, ‘'मैंने गुरु बनाए हैं।' तब मैंने कहा, 'तेरे गुरु कैसे हैं? यह मुझे बता।' आर्तध्यान - रौद्रध्यान नहीं होते हों वे गुरु । उसके अलावा दूसरे किसीको गुरु कहना गुनाह है। उन्हें साधु महाराज कहा जा सकता है, त्यागी कहा जा सकता है, परंतु गुरु कहना गुनाह है । नहीं तो फिर सांसारिक समझ चाहिए तो वकील भी गुरु है, सभी गुरु ही हैं न फिर तो ! जो गुरु धर्मध्यान करवा सकें, वे गुरु कहलाते हैं । धर्मध्यान कौन करवा सकता है? जो आर्तध्यान छुड़वा सके और रौद्रध्यान छुड़वा सके, वे धर्मध्यान करवा सकते हैं। जिस गुरु को कोई गालियाँ दे, तब रौद्रध्यान नहीं हो तो समझना कि यहाँ पर गुरु बनाने जैसे हैं । आज आहार नहीं मिला हो तो आर्तध्यान नहीं हो, तब समझना कि यहाँ पर गुरु बनाने जैसे हैं । प्रश्नकर्ता : आर्तध्यान - रौद्रध्यान नहीं होते हों तो फिर उन्हें सद्गुरु नहीं कह सकते?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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