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________________ गुरु-शिष्य ३७ जेल में डाल दें तो भी असर नहीं। द्वंद्व से परे होते हैं। द्वंद्व समझे आप? नफानुकसान, सुख-दुःख, दया-निर्दयता। एक हो वहाँ दूसरा होता ही है, उसका नाम द्वंद्व ! इसलिए जो गुरु द्वंद्वातीत हों, उन्हें सद्गुरु कहा जाता है। इस काल में सद्गुरु होते नहीं। किसी जगह पर ही होते हैं। बाक़ी सद्गुरु होते ही नहीं न! इसलिए ये लोग गुरु को ही उल्टे प्रकार से सद्गुरु मान बैठे हैं। इसलिए यह सब फँसे हुए हैं ! नहीं तो सद्गुरु मिलने के बाद चिंता होती होगी? बड़ा फर्क है, गुरु और सद्गुरु में प्रश्नकर्ता : हरकोई अपने गुरु को ही सद्गुरु मान बैठा है, वह क्या दादाश्री : अपने हिन्दुस्तान में सभी धर्मोंवाले अपने-अपने गुरु को सद्गुरु ही कहते हैं। कोई भी सिर्फ गुरु नहीं कहता। लेकिन उसका अर्थ लौकिक भाषा में है। संसार में जो बहुत ऊँचे चारित्रवाले गुरु होते हैं, उन्हें अपने लोग सद्गुरु कहते हैं। लेकिन वास्तव में वे सद्गुरु नहीं कहलाते। उनमें प्राकृतिक गुण बहुत ऊँचे होते हैं, खाने-पीने में समता रहती है, व्यवहार में समता होती है, व्यवहार में चारित्रगुण बहुत ऊँचे होते हैं, लेकिन उन्हें आत्मा प्राप्त नहीं हुआ होता। वे सद्गुरु नहीं कहलाते। ऐसा है न, गुरु दो प्रकार के हैं। एक गाईड रूपी गुरु होते हैं। गाईड अर्थात् उन्हें हमें फॉलो करना होता है। वे आगे-आगे चलते हैं मोनिटर की तरह। उन्हें गुरु कहा जाता है। मोनिटर मतलब आप समझे? जिन्हें हम फॉलो करते रहें। तिराहा आया हो तो वे डिसाइड करते हैं कि भाई, इस रास्ते नहीं, उस रास्ते चलो। तब हम उस रास्ते चलते हैं। उन्हें फॉलो करना होता है, लेकिन वे अपने आगे ही होते हैं। कहीं पर नहीं होते हैं और दूसरे, सद्गुरु! सद्गुरु मतलब हमें इस जगत् के सर्व दुःखों से मुक्ति दिलवाते हैं। क्योंकि वे खुद मुक्त हो चुके होते हैं। वे हमें उनके फॉलोअर्स की तरह नहीं रखते, और गुरु को तो फॉलो करते रहना पड़ता है हमें। उनके विश्वास पर चलना होता है।
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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