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________________ गुरु-शिष्य हैं। क्योंकि खुद की भूल दूसरों पर डालते फिरते हैं । आपको कैसी लगती है बात? प्रश्नकर्ता : ठीक है I १३ दादाश्री : किसी गुरु के साथ टकराव हो गया हो तो फिर मन में नक्की हो जाता है कि गुरु बनाने जैसे नहीं हैं। अब खुद गुरु से जले हों तो खुद गुरु नहीं बनाए, परंतु खुद का अनुभव दूसरों पर नहीं डाल सकते। किसी गुरु के साथ मुझे कड़वा अनुभव हुआ हो, इसलिए मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए कि सभी को गुरु नहीं बनाने चाहिए। खुद का पूर्वग्रह खुद के पास रहने देना चाहिए। लोगों से यह बात नहीं कहनी चाहिए। लोगों को उपदेश नहीं दिया जा सकता कि ऐसा नहीं करते। क्योंकि पूरी दुनिया को गुरु के बिना तो चलेगा ही नहीं। कहाँ से होकर निकलना है, वह भी पूछना पड़ेगा या नहीं पूछना पड़ेगा? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : इस दुनिया में कोई मनुष्य ऐसा नहीं निकला कि जो गुरु का विरोधी हो। 'गुरु नहीं चाहिए', वे शब्द किसी मनुष्य को बोलने ही नहीं चाहिए। अर्थात् गुरु नहीं चाहिए, वे सब विरोधाभासवाली बातें कहलाती हैं। कोई ऐसा कहे कि 'गुरु की ज़रूरत नहीं है' तो वह एक दृष्टि है, उसका दृष्टिराग है। इसलिए बात इतनी समझने की ज़रूरत है कि इस जगत् में गुरु की तो ज़रूरत है। गुरु पर चिढ़ रखने की ज़रूरत नहीं है। गुरु शब्द से लोग इतने अधिक भड़क गए हैं! अब उसमें मुख्य तत्व का और इस बात का क्या लेनादेना? गुरु की ज़रूरत तो ठेठ तक यह तो 'गुरु की ज़रूरत नहीं है' कहकर अपना 'व्यू पोईन्ट' रखा है। कुछ नहीं। कोई अनुभव ऐसा हुआ होगा कि सभी जगह घूमने के बाद, ऐसे करते-करते, करते-करते खुद का अंदर से ही समाधान मिलने लगा, उस श्रेणी
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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