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________________ १२ गुरु-शिष्य कहनेवाले विरोधाभास में हैं । इस दुनिया में कभी भी गुरु बनाए बिना कुछ चल सके ऐसा नहीं है । फिर वह टेकनिकल हो या चाहे कोई भी बाबत हो। 'गुरु की ज़रूरत नहीं है' वह वाक्य लिखने जैसा नहीं है । इसलिए लोगों ने मुझे पूछा ‘कितने ही लोग ऐसा क्यों कहते ? ' मैंने कहा, जान-बूझकर नहीं कहते, दोषपूर्वक नहीं कहते, गुरु के प्रति खुद की जो चिढ़ है, वह पूर्वजन्म की चिढ़ आज ज़ाहिर कर रहे हैं। प्रश्नकर्ता : गुरु के प्रति चिढ़ क्यों चढ़ी होगी? दादाश्री : ये जो-जो लोग ऐसा कहते हैं कि, 'गुरु की ज़रूरत नहीं है।' वे किसके जैसी बात हैं? एक बार बचपन में मैं खीर खा रहा था, और उल्टी हो गई। अब उल्टी दूसरे कारणों से हुई, खीर के कारण नहीं । परंतु मुझे खीर पर चिढ़ चढ़ गई, फिर खीर देखूँ और घबराहट हो जाती । इसलिए जब मेरे घर पर खीर बने, तब मैं बा से कहता कि, 'मुझे यह मिठाई खाना पसंद नहीं है, तो आप क्या दोगे?' तब बा कहती हैं, 'भाई, बाजरे की रोटी है। यदि तू घी-गुड़ खाए तो दे दूँ।' तब मैंने कहा कि, 'नहीं, मुझे घी - गुड़ नहीं चाहिए।' फिर शहद दें तभी मैं खाता था, लेकिन खीर को तो छूता ही नहीं था। फिर बा ने मुझे समझाया कि, 'भाई, ससुराल में जाएगा तब कहेंगे, कि क्या इसकी माँ ने खीर नहीं खिलाई कभी? तब तुझे खीर परोसेंगे और तू नहीं खाएगा तो खराब दिखेगा । इसलिए थोड़ा-थोड़ा खाना शुरू कर ।' ऐसेवैसे मुझे पटाया। लेकिन कुछ भी हुआ नहीं। वह चिढ़ घुस गई तो घुस गई। वैसे ही यह चिढ़ घुस गई । प्रश्नकर्ता : लेकिन गुरु के प्रति चिढ़ क्यों घुस गई ? दादाश्री : वह तो पिछले जन्म में गुरुओं के साथ झंझट हो गया होगा, तो आज उसकी चिढ़ होती है। हर एक प्रकार की चिढ़ घुस जाती है न ! कितनों को तो गुरु के प्रति नहीं, भगवान पर चिढ़ होती है। तो वे इस प्रकार से गुरु बनाने के लिए मना करते हैं, जैसे वह उल्टी दूसरे कारणों को लेकर हुई और खीर पर चिढ़ हो गई, वैसे । बाक़ी, 'गुरु के बिना चलता है' ऐसा कहनेवाले पूरी दुनिया के विरोधी
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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