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________________ गुरु-शिष्य प्रश्नकर्ता : वे रास्ता दिखा दें, फिर हमें उन्हें पकड़कर रखने की क्या ज़रूरत है? दादाश्री : रास्ते में ठेठ तक गुरु की ज़रूरत पड़ेगी। गुरु को उनके गुरु की ज़रूरत पड़ती है। हमें इन स्कूलों में मास्टरों की कब तक ज़रूरत पड़ती है? हमें पढ़ना हो तब न? पढ़ना नहीं हो तो? यानी हमें दूसरा कोई लाभ नहीं चाहिए हो तो गुरु बनाने की ज़रूरत ही नहीं है। यदि लाभ चाहिए तो गुरु बनाएँ। यानी कि कोई अनिवार्य नहीं है। यह सब आपकी इच्छानुसार है। आपको पढ़ना हो तो मास्टर रखो। आपको आध्यात्मिक जानना हो तो गुरु बनाने चाहिए और नहीं जानना हो तो कुछ नहीं। कोई नियम नहीं है कि ऐसा ही करो। यहाँ यदि स्टेशन तक जाना हो तो वहाँ पर भी गुरु चाहिए, तो धर्म के लिए गुरु नहीं चाहिए? अर्थात् गुरु तो हमें हर एक श्रेणी में चाहिए ही। गुरु बिना 'ज्ञान' नहीं इसलिए कोई भी ज्ञान गुरु के बिना प्राप्त हो सके, ऐसा है ही नहीं। सांसारिक ज्ञान भी गुरु के बिना नहीं होता और आध्यात्मिक ज्ञान भी गुरु के बिना हो ऐसा नहीं है। गुरु के बिना ज्ञान की आशा रखें, वे सारी गलत बातें हैं। प्रश्नकर्ता : एक व्यक्ति कहते हैं कि 'ज्ञान लेना नहीं होता है, ज्ञान देना भी नहीं होता है, ज्ञान हो जाता है।' तो वह समझाइए। दादाश्री : यह मूर्छित लोगों की खोज है। मूर्छित लोग होते हैं न, उनकी यह खोज है कि 'ज्ञान लेना नहीं होता, देना नहीं होता, ज्ञान अपने आप हो जाता है।' परंतु वह मूर्छा कभी भी जाती नहीं। क्योंकि बचपन से जो पढ़ा, वह भी ज्ञान लेते-लेते आया है, अध्यापक ने तुझे दिया और तूने लिया। फिर वापिस तूने दूसरे को दिया। लेने-देने का स्वभाववाला जगत् है। अध्यापक ने आपको ज्ञान नहीं दिया था? आपने दूसरों को दिया। ऐसे लेन-देन का स्वभाव है। प्रश्नकर्ता : परंतु किसीको खुद को ज्ञान अपने आप होता है या नहीं?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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