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________________ १३४ गुरु-शिष्य पैसों का क्या करना है? मैं तो दुःख लेने आया हूँ। आपके पैसे आपके पास ही रहने दो, वे आपके काम आएँगे और जहाँ ज्ञानी हों, वहाँ पैसों का लेनदेन नहीं होता। ज्ञानी तो बल्कि आपके सभी दुःख निकालने के लिए आए होते हैं, दुःख खड़े करने के लिए नहीं आए होते हैं। प्योरिटी 'ज्ञानी' की यदि मैं लोगों से पैसे लूँ, तो मुझे तो लोग चाहिए उतना पैसा देंगे। लेकिन मुझे पैसों का क्या करना है? क्योंकि वह सारी भीख जाने के बाद तो मुझे यह ज्ञानी का पद मिला है! मुझे अमरीका में गुरुपूर्णिमा के दिन सोने की चैन पहना जाते थे। दोदो, तीन-तीन तोले की! लेकिन मैं वापिस दे देता था सभीको। क्योंकि मुझे क्या करना है? तब एक बहन रोने लगी कि 'मेरी माला तो लेनी ही पड़ेगी।' तब मैंने उसे कहा, 'मैं तुझे एक माला पहनाऊँ तो तू पहनेंगी?' तो उस बहन ने कहा, 'मुझे कोई हर्ज नहीं। लेकिन आपका मुझसे नहीं लिया जा सकता।' तब मैंने कहा, 'मैं तुझे दूसरे के पास से पहनाऊँगा।' एक मन सोने की माला बनवाएँ, और फिर रात को पहनकर सो जाना पड़ेगा, ऐसी शर्त रखें तो पहनकर सो जाओगी क्या? दूसरे दिन कहोगी, 'लीजिए दादा, यह आपका सोना।' सोने में सुख होता तो सोना अधिक मिले तो आनंद हो। परंतु इसमें सुख है न, वह मान्यता है तेरी, रोंग बिलीफ़ है। इसमें सुख होता होगा? सुख तो जहाँ कोई भी चीज़ नहीं लेनी हो, वहाँ सुख है। इस वर्ल्ड में कोई चीज़ ग्रहण करनी बाकी न रहे, वहाँ सुख है। मैं तो मेरे घर का, अपने खुद के व्यापार की कमाई का-मेरे प्रारब्ध का खाता हूँ और कपड़े पहनता हूँ। मैं कुछ किसीके पैसे लेता भी नहीं और किसीका दिया हुआ पहनता भी नहीं। यह धोती भी मेरी कमाई की पहनता हूँ। यहाँ से मुंबई जाने का प्लेन का किराया मेरे घर के पैसों से! फिर पैसों की ज़रूरत ही कहाँ रही? मैं तो एक पैसा लोगों से पास से लूँ, तो मेरे शब्द लोगों को स्वीकार ही कैसे होंगे फिर! क्योंकि उसके घर की जूठन मैंने खाई। हमें कुछ नहीं चाहिए। जिसे भीख ही नहीं किसी प्रकार की, उसे भगवान भी क्या देनेवाले थे?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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