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________________ गुरु-शिष्य कहाँ पर रखनी है? ज्ञानीपुरुष के पास ! ज्ञानीपुरुष के पास जाकर कहना कि, 'बापजी प्रेम का प्रसाद दीजिए।' वे तो देते ही रहते हैं, परंतु हम माँगें तब विशेष मिलती है। जैसे छानी हुई चाय और बिना छानी हुई चाय में फर्क होता है न, उतना फर्क पड़ जाता है । छानी हुई चाय में चाय की पत्तियाँ नहीं आतीं फिर । ११९ प्योरिटी के बिना प्राप्ति नहीं यानी कि यह तो भीख है इसलिए झंझट है। प्योरिटी नहीं रही। जहाँतहाँ व्यापार हो गया है । जहाँ पैसे का लेन-देन हुआ और जहाँ पर दूसरा कुछ घुसा, वह सब व्यापार हो गया । उसमें सांसारिक लाभ उठाने की तैयारी होती है। भौतिक लाभ, वे सब तो व्यापार कहलाते हैं । दूसरा कुछ नहीं लेता हो और मान की इच्छा हो, तब भी वह लाभ कहलाता है । तब तक सभी व्यापार ही कहलाते हैं। हिन्दुस्तान ऐसा देश है, कि सबका व्यापार चलता है। लेकिन व्यापार में जोखिमदारी है। हमें क्या कहना चाहिए कि आप यह ऐसा करते हो, परंतु इसमें जोखिमदारी है। प्रश्नकर्ता : धर्म के नाम पर इतना सारा पाखंड क्यों चलता है ? दादाश्री : तब किस नाम पर पाखंड करने जाएँ ? दूसरे नाम से पाखंड करने जाएँगे तो लोग मारेंगे। बापजी दस रुपये ले गए, परंतु अब उन पर कोई आरोप लगाए और बापजी श्राप दे दें तो क्या होगा? इसलिए धर्म के नाम के अलावा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं है, और किसी जगह पर भाग छूटने की जगह नहीं है। उसमें ऐसा भी नहीं कह सकते कि सभी ऐसे ही हैं। इसमें पाँच-दस प्रतिशत बहुत अच्छा माल है ! परंतु वहाँ पर फिर कोई जाता ही नहीं है, क्योंकि उनकी वाणी में वचनबल नहीं होता और इच्छावाले गुरु की वाणी तो प्रभावित कर दे, वैसी होती है। इसलिए वहाँ पर सभी आते हैं । जब कि वहाँ उनकी भावना उल्टी होती है, जैसे-तैसे करके पैसे छीन लेना, वैसा होता है । इन प्रपंची
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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