SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ गुरु-शिष्य नहीं आता। विचार ही जहाँ उत्पन्न नहीं होते, वहाँ फिर भीख किस चीज़ की रहेगी? मान की, कीर्ति की, किसी भी प्रकार की भीख नहीं है। और मनुष्य मात्र को कीर्ति की भीख होती है, मान की भीख होती है। हम पूछे, 'आपमें कितनी भीख है, वह आपको पता चलता है? आपमें किसी भी प्रकार की भीख है क्या?' तब कहेंगे, 'नहीं, भीख नहीं है।' अरे! अभी अपमान करे तो पता चल जाएगा कि मान की भीख है या नहीं! ___हो सकता है कि स्त्री संबंध में ब्रह्मचारी हुआ हो, लक्ष्मी संबंधी भीख भी छोड़ दी हो, परंतु यह दूसरी सभी कीर्ति की भीख होती है, शिष्यों की भीख होती है, नाम कमाने की भीख होती है, सभी अंतहीन भीखें होती हैं। शिष्यों की भी भीख! कहेंगे, 'मेरे पास शिष्य नहीं हैं।' तब शास्त्रों ने क्या कहा है? जो आ मिले, खोजे बिना-अपने आप जो आ मिले, वह शिष्य! भीख से भगवान दूर इसलिए 'भीख' शब्द लिखता हूँ मैं। दूसरे लोग नहीं लिखते। 'तृष्णा' लिखते हैं। अरे, भीख लिख न! तो उसका भिखारीपन छूटे। तृष्णा का क्या अर्थ है? तृष्णा अर्थात् प्यास। अरे, प्यास तो लगे या नहीं लगे, उसमें क्या परेशानी है? अरे, यह तो तेरी भीख है। जहाँ भीख हो वहाँ पर भगवान कैसे मिलेंगे? यह भीख शब्द ऐसा है कि बिना फाँसी के फाँसी लग जाए! संपर्ण भीख जाने के बाद ही यह जगत 'जैसा है वैसा' दिखता है। जब तक मुझमें भीख होगी, मुझे अन्य कोई भिखारी नहीं लगेंगे। परंतु खुद में से भीख गई, तब सभी भिखारी ही लगेंगे। जिनकी सर्वस्व प्रकार की भीख मिटे, उसे ज्ञानी का पद मिलता है। ज्ञानी का पद कब मिलता है? तमाम प्रकार की भीख खत्म हो जाए, लक्ष्मी की भीख, विषयों की भीख, किसी भी प्रकार की भीख नहीं रहे, तब यह पद प्राप्त होता है। भीख नहीं हो तो भगवान ही है, ज्ञानी है, जो कहो सो है। भीख के कारण ही यह ऐसा बन गया है। गिड़गिड़ाना इसीलिए पड़ता है न? भीख सिर्फ
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy