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________________ गुरु-शिष्य १११ दादाश्री : यह तो ऐसा है, इन गड़रियों ने यह बात फैलाई है। गड़रिया भेडों से यह बात कहता है कि, 'नुगरा होकर मत घूमना।' तब भेड़ें समझती हैं कि, 'ओहोहो! मैं नुगरा नहीं हूँ। चलो कंठी बँधाओ! गुरु करो!' तो ये गुरु किए। वे भेड़ें और ये गड़रिये! फिर भी यह शब्द हमें नहीं बोलने चाहिए। परंतु जहाँ ओपन समझना हो, तब सिर्फ समझने के लिए कहते हैं। वह भी वीतरागता से कहते हैं। इसीलिए हम शब्द बोलते हैं, फिर भी राग-द्वेष नहीं होते। हम ज्ञानीपुरुष हुए, हम जिम्मेदार कहलाते हैं। हमें किसी भी जगह पर थोड़ा भी राग-द्वेष नहीं होता। प्रश्नकर्ता : मुझे दो-तीन बार साधु-संन्यासी मिले थे, वे कहते थे कि, 'आप कंठी बँधवाइए।' मैंने मना कर दिया। मैंने कहा, 'मुझे नहीं बँधवानी है।' दादाश्री : हाँ, परंतु जो पक्के हैं, वे नहीं बँधवाएँगे न! नहीं तो कच्चा हो तो बँधवा लेगा न! प्रश्नकर्ता : गुरु के पास से कंठी नहीं बँधवाई हो, परंतु हमें किसी गुरु पर पूज्यभाव पैदा हुआ हो और उनका ज्ञान लें, तो कंठी बँधवाए बिना गुरुशिष्य का संबंध स्थापित हुआ कहलाएगा या क्या? कितने ही शास्त्रों ने, आचार्यों ने कहा है कि नुगरा हो तो उसका मुँह भी नहीं देखना चाहिए। दादाश्री : ऐसा है, कि बाड़े में घुसना हो तो कंठी बँधवाना और स्वतंत्र रहना हो तो कंठी नहीं बँधवाना। जहाँ पर ज्ञान देते हों, उनकी कंठी बाँधना। बाड़ा मतलब क्या कहते हैं कि पहले तू इस स्टेन्डर्ड में तैयार हो जा! यह थर्ड स्टेन्डर्ड में तैयार हो जा, तब तक और कहीं व्यर्थ प्रयत्न मत करना, ऐसा कहना चाहते हैं। ___बाक़ी, नुगरो तो किस तरह कहें? नुगरो तो इस जमाने में कोई है ही नहीं। यह तो नुगरो किसने कहा है? ये कंठीवाले जो गुरु हैं न, उन्होंने नुगरो खड़ा किया है। उनके ग्राहक कम नहीं हो जाएँ इसलिए। कंठी बाँधी हुई नहीं हो उसमें हर्ज नहीं है। यह कंठी तो, एक प्रकार का मन में सायकोलोजिकल इफेक्ट डाल देती है। यानी ये सभी संप्रदायिक मतवाले क्या करते हैं? लोगों
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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