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________________ ११० गुरु-शिष्य दादाश्री : कोई अच्छे गुरु हों तब वह डब्बा होगा। डब्बा मतलब समझता नहीं होगा कुछ भी। तो उस बिना समझ के गुरु का क्या करें फिर? समझ होती है, तब दुरुपयोग करें, वैसे होते हैं। इसलिए इसके बदले तो घर पर ये पुस्तकें हों, वे पकड़कर उनका मनन करते रहना अच्छा। इसलिए जैसे अभी हैं, वैसे गुरु नहीं चलेंगे। इसके बदले गुरु नहीं बनाना अच्छा है, गुरु के बिना वैसे ही रहना अच्छा। प्रश्नकर्ता : हमारी संस्कृति के अनुसार बिना गुरु का मनुष्य नगुणो (निर्गुण, गुणहीन) कहलाता है। दादाश्री : कहाँ सुना है आपने यह? प्रश्नकर्ता : संत पुरुषों के पास से सुना था। दादाश्री : हाँ, परंतु वे क्या कहते हैं? नगुणो नहीं, परंतु नगुरो (गुरु बिना का)। या फिर नगुरो कहते हैं। नगुरो मतलब बिना गुरु का! गुरु नहीं हों उन्हें अपने लोग नगुरो कहते हैं। ___बारह वर्ष की उम्र में हमारी कंठी टूट गई थी, तो लोग 'नगुरो, नगुरो' करते रहते थे! सभी कहते, 'कंठी तो पहननी पड़ती है। फिर से कंठी पहनाएँगे।' मैंने कहा, 'इन लोगों के पास से तो कंठी पहनी जाती होगी? जिनके पास प्रकाश नहीं है, जिनके पास दूसरों को प्रकाश देने की शक्ति नहीं है, उनके पास से कंठी किस तरह पहनी जाए?' तब कहे, 'लोग नगुरो कहेंगे।' अब नुगरो क्या चीज़ होती होगी? नगुरो मतलब कोई शब्द होगा गाली देने का, ऐसा समझा। वह तो बाद में बड़ा हुआ, तब समझ में आया कि नगुरु, न गुरुवाला! प्रश्नकर्ता : यह किसीको गुरु मानने हो, तो उनकी जो विधियाँ होती हैं, कंठी बँधवाते हैं, कपड़े बदलवाते हैं, ऐसी कुछ ज़रूरत है क्या? दादाश्री : ऐसी कोई जरूरत नहीं है। प्रश्नकर्ता : धर्मगुरु ऐसा क्यों कहते हैं कि कंठी बँधवाई हो, उन्हें भगवान तारते हैं और नगुरा को कोई तारता नहीं है। यह बात सच है?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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