SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरु-शिष्य यानी यह सारा अंधेर चल रहा है हिन्दुस्तान में | अपने हिन्दुस्तान देश में ही नहीं, परंतु सब ओर ऐसा ही हो गया है I क्या? १०७ इस तरह सच्चा 'धन' परखा जाए प्रश्नकर्ता : सच्चे गुरु हैं, यह जानने के लिए कोई पक्की पहचान है दादाश्री : पहचान में तो, हम गालियाँ दें, तो क्षमा देते नहीं, परंतु सहज क्षमा होती है। हम मारें तो भी क्षमा होती है, चाहे जैसा अपमान करें तो भी क्षमा होती है । फिर, सरल होते हैं । उन्हें हमारे पास से कोई लालच नहीं होता । अपने पास से पैसे से संबंधित कोई माँग नहीं करते। हम पूछें, उस प्रश्न का समाधान करते हैं और यदि उन्हें छेड़ें, परेशान करें, तो भी वे फन नहीं फैलाते । शायद कभी भूलचूक हो गई हो तो भी वे फन नहीं फैलाते । फन फैलाएँ उन्हें क्या कहते हैं? फनधारी साँप कहते हैं । ये सारी पहचान बताई हैं उनकी । नहीं तो फिर गुरु की जाँच करनी चाहिए और फिर गुरु बनाने चाहिए। चाहे जिसे गुरु बना बैठें, उसका अर्थ ही क्या है फिर ! प्रश्नकर्ता : कौन कैसे हैं, वह किस तरह पता चले ? दादाश्री : पहले के जमाने के एडवर्ड के रुपये और रानी छाप के रुपये आपने देखे हैं क्या? अब वह रुपया हो न तो भी ये लोग विश्वास नहीं रखते थे। अरे, रुपये हैं, व्यवहार में उसका चलन है न? परंतु नहीं, तो भी उसे पत्थर या लोहे के ऊपर पटकते थे ! अरे, लक्ष्मी को मत पटक । परंतु फिर भी पटकते थे वे। क्यों पटकते होंगे ? रुपया खनकाए तब कलदार है या खोटा, वह पता चलेगा या नहीं चलेगा? ऐसे खनकाए कि खननन्...' बोले तो हम उसे अलमारी में-तिजोरी में रख देते हैं और यदि खोटा निकले तो काट देते हैं या फैंक देते हैं। अर्थात् ऐसा टेस्ट करके देखना, रुपया खनकाकर देख लेना । उसी तरह गुरु को हमेशा टेस्ट करो । प्रश्नकर्ता : परीक्षा करें?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy