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________________ १०६ गुरु-शिष्य तब कहलाएगा, गुरु मिले इसलिए मैं तो किसीका सुनता ही नहीं था। क्योंकि उनमें कोई बरकत नहीं दिखती थी, उनके चेहरे पर नूर नहीं दिखता था, उनसे पाँच लोग सुधरे हों तो मुझे दिखाओ कि जिनमें क्रोध-मान-माया-लोभ की कमज़ोरियाँ चली गई हों या मतभेद कम हुए हों। प्रश्नकर्ता : गुरु सच्चे मिले हैं या नहीं, वह जानने की शक्ति अपनी कितनी? दादाश्री : पत्नी के साथ मतभेद खत्म हो, तो समझना कि गुरु मिले हैं इन्हें। नहीं तो यह तो पत्नी के साथ भी मतभेद होते ही रहते हैं। रोज़ झगड़े और झगड़े ही चलते रहते हैं, अपने आप। यदि गुरु मिलें और कोई ज़्यादा फर्क नहीं आया, तो काम का ही क्या वह? यह तो क्लेश जाता नहीं, कमज़ोरियाँ जाती नहीं और कहते हैं कि 'मुझे गुरु मिल गए हैं।' अपने घर का क्लेश जाए, कलह जाए, तब गुरु मिले कहा जाएगा। नहीं तो कहा ही कैसे जाए कि गुरु मिले हैं? यह तो अपना पक्ष मज़बूत कराते हैं कि 'हम इस पक्ष के हैं।' उस तरह अपना पक्ष मज़बूत करता है और गाड़ी चलाता है। अहंकार इस ओर का था, उसे उस ओर मोड़ता है। हमें छह ही महीने सच्चे गुरु मिले हों, तो गुरु इतना तो सिखाएँगे ही कि जिससे घर में क्लेश चला जाए। सिर्फ घर में से ही नहीं, मन में से भी क्लेश चला जाए। मन में क्लेशित भाव नहीं हों और यदि क्लेश होते हों, तो उस गुरु को छोड़ दो। फिर दूसरे गुरु ढूँढ निकालना। बाक़ी, चिंता-उपाधि हों, घर में मतभेद हों, वे सारी उलझनें यदि नहीं गई हों तो वे गुरु किस काम के? उन गुरु से कहें कि, 'अभी तक मुझे गुस्सा आता है घर में। मैं तो बेटे-बेटी पर चिढ़ जाता हूँ, वह बंद करवा दीजिए। नहीं तो फिर अगले साल केन्सल कर दूंगा।' गुरु को ऐसा कहा जा सकता है या नहीं कहा जा सकता? आपको कैसा लगता है? नहीं तो ये तो गुरुओं को भी 'मिठाई' मिलती रहती है आराम से, किश्तें मिलती ही रहती हैं न!
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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