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________________ गुरु-शिष्य १०१ दादाश्री : उनका चारित्रबल नहीं है। उन्हें चारित्रबल विकसित करना चाहिए। रात को बर्फ रखा हुआ हो, तो समझदार या नासमझ सभी पर उसका असर नहीं होगा? ठंडक लगती रहेगी न? अर्थात् चारित्रबल चाहिए। परंतु यह तो खुद का चारित्रबल नहीं है। इसलिए इन लोगों ने खोज (!) की, और फिर शिष्यों पर चिढ़ते रहते हैं। उसका कोई अर्थ ही नहीं न! वे तो बेचारे हैं ही ऐसे। लेने आए हैं, उनके साथ झंझट और क्लेश नहीं करते! अनुभव की तो बात ही अलग प्रश्नकर्ता : खुद को अनुभव से ज्ञान प्राप्त हो और दूसरा उपदेश दे और ज्ञान प्राप्त हो, वे दोनों ज़रा समझाइए। दादाश्री : उपदेश का तो, हम लोग शास्त्र में पढ़ते हैं न, उपदेश उसके जैसा है। परंतु उपदेशकों में यदि कभी कोई पुरुष वचनबलवाला हो कि जिसका शब्द अपने अंदर घर कर जाए और वह निकले नहीं बारह-बारह महीनों तक, तो उस उपदेश की बात ही कुछ और है। वर्ना यह जिनका उपदेश एक कान में से घुसे और दूसरे कान में से निकल जाए, वैसे उपदेश की कोई वेल्यु नहीं है। वह और पुस्तक दोनों एक-से हैं। जिसका उपदेश और जिसके वाक्य, जिसके शब्द भीतर महीनों तक गूंजते रहें, उस उपदेश की खास ज़रूरत है! वह अध्यात्म विटामिनवाला उपदेश कहलाता है। वह शायद ही कभी हो सकता है। परंतु वे खुद चरित्रबलवाले होने चाहिए, व्यवहार चारित्रवाले! शीलवान होने चाहिए, जिनके कषाय मंद हो चुके होने चाहिए। शब्दों के पीछे करुणा ही प्रवाहित ___ बाक़ी, ये सब जो उपदेश बोलते हैं न कि, 'ऐसा करो, वैसा करो।' परंतु उनके पैर पर आए, उस घड़ी वे चिढ़कर खड़े हो जाते हैं। यह तो उपदेश की बातें किया करते हैं। वास्तव में उपदेश देने का अधिकार किसे है? जो चिढ़ता नहीं हो, उसे यह सारा उपदेश देने का अधिकार! यह तो ज़रा-सा सामनेवाले ने कहा तो तुरंत फन फैलाता है, 'मेरे जैसा जानकार, मैं ऐसा और
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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