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________________ १०० गुरु-शिष्य हैं उससे वैराग नहीं आता । किताबों जैसे गुरु हो गए हैं। यदि हमें वैराग नहीं आए तो समझना कि ये किताब जैसे गुरु हैं । वचनबल होना चाहिए न ! उसमें भूल उपदेशक की प्रश्नकर्ता : कईबार ऐसा होता है कि उपदेश सुनने के लिए पच्चीस लोग बैठे हों, उनमें से पाँच को वह स्पर्श कर जाता है और बाक़ी के बीस वैसे के वैसे रह जाते हैं । उसमें उपदेशक की भूल है या ग्रहण करनेवाले की भूल है ? I दादाश्री : इसमें सुननेवाले की क्या भूल है बेचारे की ? उपदेशक की भूल है। सुननेवाले तो हैं ही ऐसे । वे तो साफ-साफ ही कहते हैं न कि, 'साहब, हमें तो कुछ आता नहीं, इसलिए तो आपके पास आए हैं।' लेकिन यह तो उपदेशकों ने रास्ता ढूँढ निकाला है, खुद का बचाव ढूँढ लिया है कि 'आप ऐसे नहीं करते, आप ऐसे....' ऐसा नहीं कहना चाहिए । वह आपके पास हेल्प के लिए आए और आप ऐसा करते हैं? यह तो उपदेशकों की भूल है । यह स्कूल के जैसी बात नहीं है । स्कूल की बात अलग है। स्कूल में जैसे बच्चे कुछ नहीं करते, वह अलग है और यह अलग है। ये तो आत्महित के लिए आए हैं, जिसमें दूसरी किसी तरह की बूरी दानत नहीं है । संसार हित के लिए नहीं आए हैं। इसलिए इन उपदेशकों को ही सबकुछ करना चाहिए । मैं तो सभी से कहता हूँ कि, 'भाई, आपसे कुछ भी नहीं हो सके तो वह मेरी भूल है। आपकी भूल नहीं है।' आप मेरे पास रिपेयर करवाने आए कि ‘मेरा यह रिपेयर कर दीजिए ।' फिर वह रिपेयर नहीं हुआ तो उसमें भूल किसकी? प्रश्नकर्ता : पच्चीस लोग बैठे हों, पाँच को प्राप्ति हो और बीस को प्राप्ति नहीं हो, तो उसमें गुरु की ही भूल है ? दादाश्री : गुरु की ही भूल ! प्रश्नकर्ता : क्या भूल होती है उनकी ?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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