SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) दादाश्री : खाया है तो अभी भी प्रतिक्रमण करो न, अभी भी भगवान बचा लेंगे। अभी भी जिनालय में जाकर पश्चाताप करो। अभी तो जीवित हो। इस देह में हो, तब तक पश्चाताप करो। प्रश्नकर्ता : सिर्फ पश्चाताप करने से क्या होगा? दादाश्री : वह आपको समझ में आए तो करो। ज्ञानीपुरुष की बात माननी हो तो मानो। नहीं माननी हो तो आपकी मरज़ी की बात है। यदि आप को नहीं माननी हो तो उसका कोई उपाय नहीं है। अभी भी पश्चाताप करोगे तो गाँठे ढीली हो जाएँगी और ऊपर से राज़ी-खुशी से किया है। इसलिए नर्कगति बाँध चुके हो। अणहक्क का खाया तो सही, लेकिन राज़ी-खुशी से करे तो नर्कगति में जाएगा और यदि पश्चाताप करे तो जानवर में जाएगा। भयंकर नर्कगति भुगतनी है। इसलिए यदि अणहक्क का जितना खाना हो, उतना खाना लोगों का। प्रश्नकर्ता : इन सभी में से छूटने का श्रेष्ठ उपाय क्या है? दादाश्री : अणहक्क का जो खाया है उसका पश्चाताप करो। अणहक्क का खाने का विचार आए तो भी पश्चाताप करो। पूरे दिन पश्चाताप में ही रहो कि इस तरह नहीं खाना चाहिए। मुझे तो जो मेरे हक़ का हो, वही मेरे काम का है। खुद के हक़ की स्त्री हो, खुद के हक़ के बच्चे हों, घर-मकान सब खुद का हो, लेकिन परायों के हक़ का कैसे लिया जाए? उसे फिर जानवर हुए बिना चारा नहीं है, नर्कगति के अधिकारी हो गए हैं। भयंकर दुःख में फँसे हैं। अभी भी सतर्क होना हो, तो हो जाओ। ये ज्ञानीपुरुष क्या कहते हैं कि, 'आपको पश्चाताप रूपी हथियार दिया है, प्रतिक्रमण करते रहना।' 'हे भगवान! नासमझी में, खराब बुद्धि से, कषायों से प्रेरित होकर मैंने ये जो दोष किए हैं, भयंकर दोष किए हैं, उनके लिए क्षमा माँगता हूँ।' कषायों की प्रेरणा से किए हैं, आपने खुद नहीं किए हैं। अभी भी करना हो तो प्रतिक्रमण करना, नहीं करना हो तो आपकी मरज़ी की बात है।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy