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________________ अणहक्क की गुनहगारी अपने यहाँ शादी करवाते हैं, तो वह शादी करवाई यानी आप दोनों के हक़ का है। उसमें भगवान को एतराज़ नहीं है, लेकिन अणहक्क का होगा तो एतराज़ है। क्योंकि अणहक्क का यानी दूसरे के हक़ का उसने लूट लिया। चोर तो अच्छे होते हैं कि लक्ष्मी ही लूटते हैं, लेकिन ये तो कुछ और ही चीजें लूट ले जाते हैं। फिर कहेगा कि, 'मुझे मोक्ष में जाना है।' अरे, यह मार्ग मोक्ष में जाने का है ही नहीं। यह तो उल्टा ही रास्ता अपनाया है। अणहक्क का भोग लेते हैं या नहीं भोगते? भोगते हैं, और वह भी चोरी-छुपे नहीं, रोब से भोगते हैं। प्रश्नकर्ता : जानते हैं फिर भी अणहक्क का भोगने का प्रयत्न करते दादाश्री : इसीलिए तो ये दुःख हैं न? इसीलिए यह संसार खड़ा है। संसार में सुख चाहिए तो अणहक्क का मत भोगना। अणहक्क का भोगे, उसमें मन से ऐसा मानता है कि 'मैं सुखी हूँ,' बस उतना ही है। बाकी, उसमें 'सेफसाइड' नहीं है और मैं जो बात बता रहा हूँ, उसमें तो हमेशा के लिए 'सेफसाइड' है। प्रश्नकर्ता : अणहक्क का भोगने के लिए कौन सी वृत्ति घसीट ले जाती है? दादाश्री : उसकी चोर नीयत है, वही वृत्ति। प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन आप कहते हैं कि हम यदि अणहक्क का भोगने नहीं जाएँ, फिर भी हमें जो मिलनेवाला है वह तो मिलेगा ही, लेकिन लेने जाएँ तो उससे नये परिणाम पैदा होते हैं न? दादाश्री : एक सेठजी का खेत हमारे खेत के पास ही था, और एक चाचा का खेत भी पास में था। उसमें जहाँ कहीं घीया दिखाई देता था उसे हम तोड़कर ले आते थे। तब क्या वह हक़ का कहलाएगा? हमें उनसे कहना चाहिए था कि मैं आपके खेत में से घीया तोड़कर ले जाऊँगा या फिर तोड़ने के बाद भी मुझे बता देना चाहिए। लेकिन अणहक्क का तो लेना ही नहीं चाहिए।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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