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________________ ब्रह्मचर्य हेतु वैज्ञानिक 'गाइड' २८१ नर्क है। विषय को यदि ज्ञानीपुरुष से समझ ले कि 'ओहोहो ! पूरे जगत् की दुर्गंध इसमें है! पूरे जगत् का दुःख इसमें है! पूरे जगत् की तमाम परेशानियाँ इसमें है!' यह तो, लोग कुछ जानते ही नहीं, इसलिए मूर्खता के कारण यह सब उल्टा चलता रहता है। उपदेशक दो तरह के होने चाहिए। या तो ज्ञानी होना चाहिए और यदि अज्ञानी हो, लेकिन शीलवान होगा तो चलेगा! शील नहीं होगा तब तो किसी का भला नहीं हो पाएगा। बल्कि उनसे मिलने से दुःख बढ़ जाएँगे। संपूर्ण चरित्र तो किसे कहेंगे? शील को चरित्र कहते हैं। शील यानी विषय का विचार तक नहीं आए। हमें विषय का एक भी विचार नहीं आता। हमारा जो चरित्र है, वही चरित्र कहलाता है। संयम परिणामी उसे कहेंगे कि जिसे विषय का विचार ही नहीं आए! खरा ब्रह्मचारी ही बोले ब्रह्मचर्य पर प्रश्नकर्ता : कुछ महापुरुषों ने ब्रह्मचर्य पर बहुत ज़ोर दिया है। दादाश्री : ज़ोर दिया अवश्य था लेकिन पुस्तक नहीं लिखी थी, उपाय नहीं बताए थे। उपाय कैसे जानेगा? जब तक खुद ने संपूर्ण ब्रह्मचर्य पालन नहीं किया है? प्रश्नकर्ता : वे ब्रह्मचारी ही थे। दादाश्री : वे भले ही ब्रह्मचारी हों, फिर भी जब तक उपाय नहीं बताए, तब तक पुस्तक नहीं बन सकती। अभिप्राय दें कि ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए, लेकिन सिर्फ ऐसा कहने से पालन नहीं हो सकेगा। इसलिए वह यूज़फुल नहीं है। हेल्पफुल नहीं है। जो वाणी हमें ब्रह्मचर्य का पालन करवाए, पालन करने में हेल्प करे, वह काम आएगी। वह तो एक आशय हुआ कि ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए। वह उसे हेल्प करता है। लेकिन अब इसका पालन कैसे करे? तो उसके लिए साधन तो चाहिए न? इन्सान अब्रह्मचर्य की ज़िम्मेदारी समझे, तब ब्रह्मचर्य पालन कर सकता है। कितना भारी जोखिम है, जब ऐसा समझ में आएगा, तब। उसे
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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