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________________ विषय में से छूटने के बाद शुद्धात्मा पद में ज़्यादा रहा जा सकता है। हक़ के विषय में एतराज़ नहीं है, लेकिन वह भी नियम से होना चाहिए। ५. संसारवृक्ष की जड़ विषय जहाँ विषय है वहाँ कषाय, टकराव और द्वेष हैं । विषय और कषाय में मूल अंतर क्या है ? विषय पिछले जन्म का परिणाम है और कषाय वह अगले जन्म का कारण है। क्रमिक मार्ग में विचार करके आत्मा प्राप्त करता है । निरंतर एकसमान विचारधारा रहती है, जिससे कर्म खपते हैं, उसके विचार ज्ञानाक्षेपकवंत होते हैं । विषय को नो-कषाय (नहीं के बराबर कषाय) में रखा गया है, क्योंकि क्रोध - मान-माया - लोभ विषय में नहीं आते। फिर भी ब्रह्मचर्य को महाव्रत में रखा गया है । कषाय कॉज़ेज़ हैं और विषय इफेक्ट हैं । अतः बड़ा दोष कषाय का है । ६. आत्मा अकर्ता - अभोक्ता वैज्ञानिक दृष्टि से आत्मा सूक्ष्मतम है और विषय स्थूल है। सूक्ष्मतम स्थूल को कैसे भोग सकता है ? अतः आत्मा ने कभी विषय भोगा ही नहीं । अहंकार सूक्ष्म है और विषय स्थूल है, इसलिए अहंकार भी विषय को नहीं भोग सकता। अहंकार केवल भ्रांति से मानता है कि मैंने विषय भोगा । उससे भयंकर भोगवटा आता है। गीता में कहा है, 'विषय विषय को भोग हैं', जबकि आत्मा तो त्रिकाल शुद्ध ही है । ७. आकर्षण - विकर्षण का सिद्धांत आकर्षण होता है पुद्गल को, वह लोहचुंबक और आलपिन जैसा है। बाकी, आत्मा ने कभी विषय भोगा ही नहीं । 30
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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