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________________ [ ६ ] आत्मा अकर्ता - अभोक्ता विज्ञान की दृष्टि से विषय का भोक्ता कौन ? खाओ-पीओ, विषय भोगो, लेकिन सब लिमिट में होना चाहिए । नॉर्मेलिटी से सभी में रहो न ? विषय भोगने के लिए भगवान ने मना नहीं किया है। विषय के साथ भगवान का झगड़ा नहीं था । भगवान भी तीस साल तक घर पर रहे थे। यानी यदि विषय के साथ ही झगड़ा होता तो पहले से ही क्यों नहीं छोड़ दिया ? ऐसा नहीं है । विषय का और आत्मा का लेना-देना नहीं है। आत्मा कभी-भी विषयी हुआ ही नहीं है और यदि विषयी हुआ होता तो उसका रूपांतर अलग ही तरह का हो गया होता ! उसके गुणधर्म ही बदल गए होते ! वह तो परमात्मा का परमात्मा ही रहा है! इतनी सारी योनियों में जाने के बावजूद खुद का परमात्मापन नहीं छोड़ा, यह भी आश्चर्य है न! खुद के गुणधर्म नहीं बदले । आत्मा और अनात्मा कम्पाउन्ड के रूप में नहीं हैं। आत्मा - अनात्मा, दोनों तेल और पानी के मिक्सचर जैसे रूप में हैं । ज्ञानीपुरुष उसका ऐसा रास्ता निकाल देते हैं कि तेल-तेल अलग हो जाए और सारा पानी भी अलग हो जाए। क्योंकि ज्ञानी आत्मा को पहचानते हैं, इसीलिए यह कर सकते हैं। तेल और पानी में तो दो ही चीजें हैं। जबकि इसमें तो आत्मा और अन्य पाँच चीजें हैं। 'आत्मा का क्रियावादपना अज्ञानता की वजह से है ।' जबकि लोग कहते हैं कि आत्मा ने यह किया, आत्मा ने वह किया । लेकिन आत्मा अत्यंत सूक्ष्मतम वस्तु है । विषय एकदम स्थूल हैं । आँखों से देखे जा सकें, ऐसे विषय हैं, स्पर्श से अनुभव हों, ऐसे विषय हैं । अब विषय, वे एकदम स्थूल हैं। छोटे बच्चे भी समझ जाएँ कि इस विषय में मुझे आनंद आया । 4
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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