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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) खाया होगा? जब से दुनिया में आए तभी से खा ही रहे हो न ! और यह क्या नया शुरू किया है कुछ ?! अब से सावधान प्रश्नकर्ता : पहले से अब्रह्मचर्य का माल भरकर लाया है न ? तो फिर इस जन्म में क्या करे वह ? २६० दादाश्री : उसे इस जन्म में नये सिरे से समझना चाहिए कि पहले ब्रह्मचर्य का माल नहीं भरा था। अब नये सिरे से यह भरना चाहिए। पिछला जो गलन हो रहा है, वह फिर से खड़ा नहीं होना चाहिए । ज्ञान मिलने के बाद, ये सारी व्यावहारिक चिंताएँ करने के बजाय मूल स्वभाव का भान रखना । व्यवहार से संबंधित झंझट कहाँ करने जाएँ ? प्रश्नकर्ता : स्वभाव का भान रखना यानी ? दादाश्री : 'मैं शुद्धात्मा हूँ' और इन पाँच वाक्यों में ध्यान रखना । और व्यावहारिक में वह सब जो नुकसान होगा, जो होना होगा सो होगा, उसका जो दंड मिलेगा, उसे देख लेंगे, दंड भुगत लेंगे। उसकी चिंता में पड़े तो यह मूल चीज़ रह जाएगी। जिसे यह नहीं मिला हो, उसे सभी चिंताएँ करनी हैं। पाँच आज्ञा में रहे तो उसमें सबकुछ आ गया।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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