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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) इसमें कोई सुख है ही नहीं। जलेबी में सुख है, पेड़े में सुख है, चिवड़े में सुख है, लेकिन इसमें सुख नहीं है । जलेबी में से बहुत सुगंध आती है, स्पर्श अच्छा लगता है, स्वाद भी आता है, आँखों से देखना भी अच्छा लगता है। खाते समय मुँह में कड़कड़ आवाज़ आती है, कानों से वह सुनना भी अच्छा लगता है। यह ताज़ी - ताज़ी जलेबी खाने में पाँचों इन्द्रियों को अच्छा लगता है। जबकि विषय में तो यदि सभी इन्द्रियों से काम लेने जाएँ तो वे पीछे हट जाएँगी। आँखों से देखने जाएँ तो घबराहट हो जाए । नाक से सूँघने जाए तो भी घबराहट हो जाए, जीभ से चखने जाए तो भी घबराहट हो जाए ! २४२ प्रश्नकर्ता : इसमें 'एक्चुअली' जो आनंद लेता है, वह अहंकार ही लेता है न ? दादाश्री : सुख माना है, इसलिए ! उसमें रोंग बिलीफ है, सिर्फ ! तुझे कभी दाद हुई है ? दाद को खुजलाने जैसा है, यह ! और फिर कोई बैठा हुआ हो तो मन में घबराता है कि खुजली करूँगा तो खराब दिखेगा। उस समय फिर तू नहीं करता और कोई नहीं होता तब तू खुजलाता है, उसमें मिठास आती है तुझे ! कृपालुदेव ने विषय के सुख को दाद की खुजली जैसा सुख कहा है I प्रश्नकर्ता : विषय सुख से दूर रहने के लिए जो प्रयत्न किए जाते हैं, उन्हें पुरुषार्थ कहते हैं ? दादाश्री : हाँ। लेकिन वह सुख है ही नहीं, वह केवल मान्यता ही है । ' रोंग बिलीफें' ही हैं । व्यवहार में लोगों से यह बात नहीं कह सकते, संसार व्यवहार के लिए यह काम का है ही नहीं । यह बात संसार व्यवहारवाले लोगों से कहें तो उन्हें दुःख होगा। क्योंकि सिर्फ इसी एक सुख का अवलंबन है, वह भी उन बेचारों का हमने ले लिया ! यह बात तो जिन्हें ज्ञान हो, उनसे की जा सकती है, वर्ना बात भी नहीं की जा सकती। हाँ, किसी के सुख के लिए नहीं, लेकिन यदि विषय संतान प्राप्ति के लिए हो तो बात अलग है। पुत्रेष्णा के शमन हेतु हो तो ठीक है। लेकिन यह
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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