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________________ विषय सुख में दावे अनंत २२९ की हैं। जैसे-जैसे उन्हें छोड़ने जाओगे, वैसे-वैसे और ज्यादा ‘रोंग बिलीफ' खड़ी होती जाएँगी। वह तो जब 'ज्ञानीपुरुष' 'राइट बिलीफ' बिठा देते हैं, तब ‘रोंग बिलीफ' छूट जाती हैं। आत्मा का सुख नहीं भोगते और पुद्गल से सुख माँगा आपने! आत्मा का सुख होता, तो हर्ज ही नहीं था लेकिन पुद्गल से भीख माँगी है तो वह लौटानी पड़ेगी। वह 'लोन' है। जितनी मिठास आती है, उतनी ही उसमें से कड़वाहट भुगतनी पड़ेगी। क्योंकि पुद्गल से 'लोन' लिया है। उसे 'री पे' करते समय उतनी ही कड़वाहट आएगी। पुद्गल से लिया है इसलिए पुद्गल को ही ‘री पे' करना पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : हमने रुपये लिए होंगे तो वापस रुपये ही देने पड़ेंगे न? तो फिर हमने उससे मिठास ली तो हम मिठास ही वापस क्यों नहीं लौटाते? ऐसा संबंध क्यों नहीं आता? कड़वाहट ही क्यों आती है? दादाश्री : ऐसा कहीं होता होगा? जो 'लोन' लिया, उसे वापस करना है। रुपये लिए तो वे रुपये वापस करने हैं। अब मिठास, उसे देना नहीं कहते। ऐसा है न, जब सोना लिया उस समय अच्छा लगता है, लेकिन सोना ‘री पे' करने जाओ तो कड़वाहट ही लगती है। लिया हुआ कुछ भी वापस करते हो, तब उस समय कड़वाहट बर्तती है, ऐसा नियम है और वापस किए बिना चारा भी नहीं है न! प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या लोग प्रेम से वापस नहीं देते? दादाश्री : जिसने जो चीज़ ली है, उसे छोड़नी पड़े तो वह उसे खुद को अच्छा नहीं लगता। अतः प्रत्येक चीज़ को 'री पे' करने में भयंकर दुःख होता है। प्रश्नकर्ता : इसमें सुख लिया उसके परिणाम स्वरूप ही ये झगड़े और क्लेश है? दादाश्री : इसीमें से खड़ा हुआ है यह सब। और सुख कुछ भी नहीं है। ऊपर से सुबह-सुबह अरंडी का तेल पीया हो, ऐसा चेहरा हो
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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