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________________ फल कि जिनसे असंख्य बीज डल जाएँ ऐसे हैं, वैसे असंख्य जोखिम खड़े हो जाते हैं! इसलिए विषय-कोंपल को तो अंकुर फूटने से पहले ही उखाड़ लेना चाहिए। यानी क्या कि विषय का विचार आए या दृष्टि ज़रा सी भी खिंचे या दृष्टि बिगड़ने लगे, उससे पहले ही जागृति हाज़िर रखकर और 'थ्री-विज़न' के उपयोग करके तथा सामनेवाले के शुद्धात्मा के दर्शन से देखतभूली' टालने का पुरुषार्थ प्रारंभ करना है। मन और वृत्तियों का दोष होते ही उस घड़ी स्वच्छ रखने का 'ज्ञानीपुरुष' का प्रतिक्रमण का अद्भुत प्रयोग सदा जागृत रखना पड़ेगा। फिर बाद में उन-उन दोषों को और विषयग्रंथि को दिनभर में कभी भी सामायिक-प्रतिक्रमण के प्रयोग से साफ करते-करते परिणाम स्वरूप निग्रंथ दशा उत्पन्न होगी, ऐसा यह 'अक्रमविज्ञान' है! _ 'अक्रमविज्ञान' से उत्पन्न होनेवाली जागृति पूर्वक वाले, 'थ्री विज़न' की दृष्टि से देखते ही मोहदृष्टि विलय हो जाती है। इसमें फर्स्ट विज़न में नेकेड दिखाई देता है, दूसरे ही सेकन्ड में, सेकन्ड विज़न में त्वचा रहित अंग दिखाई देते हैं और तुरंत उसके बाद के सेकन्ड में कटा हुआ, चिरा हुआ शरीर दिखाई देता है, जिसमें हाड़-माँस, काटी हुई आंतें, खून-विष्ठा आदि दिखने लगते हैं। वहाँ पर फिर एक क्षण के लिए भी मोहदृष्टि खड़ी रहेगी क्या? २. विषय भूख की भयानकता जिन्हें 'अक्रमविज्ञान' की प्राप्ति हुई है, उनके लिए 'देखतभूली' टालने का रास्ता खुल गया है। दृष्टि बिगड़ते ही प्रतिक्रमण और शुद्ध उपयोग से सब साफ कर देना है। वर्ना जो किसी काल में उपलब्ध नहीं हो, ऐसे इस अद्भुत 'अक्रमविज्ञान' को भी क्षणभर में हिला कर रख दे, 'देखतभूली' का यह दोष ऐसा है। इसलिए वहाँ अत्यंत सावधान रहना है। किंचित् मात्र भी गफलत वहाँ पर नहीं चला सकते। बाकी पॉइज़न की आज़माइश तो नहीं ही होती न? उसे तो पीने से पहले फेंक देने पर ही छुटकारा मिलेगा! क्रमिक मार्ग का ब्रह्मचर्य और अक्रम मार्ग का ब्रह्मचर्य, इनमें से 25
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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