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________________ लेकिन उस 'ज्ञान' की गेड़(अच्छी तरह समझ में आना) तो 'प्रत्यक्ष ज्ञानीपुरुष' ही बिठा सकते हैं। जिसे संसार के सर्व बंधनों से मुक्त ही होना है, मोक्ष में ही जाना है, उसे सर्व बंधनों से मुक्त होते-होते, विषय बंधन जो कि संसार के सर्व बंधनों का मूल है, उससे छूटना ही पड़ेगा। दो प्रकृतियाँ कभी भी एक नहीं हो सकतीं। पुद्गल का आकर्षण कभी भी पुद्गल की ओर से आत्मा की ओर नहीं जाने देता। आत्मरूप रहकर, ऐक्य-अभेदता सिद्ध करके अनंत आत्माओं ने मोक्ष पाया है, लेकिन दैहिक एकता साधकर कोई कभी अल्पसिद्धि प्राप्त कर सका हो, ऐसा कभी भी संभव नहीं है। वीतरागों द्वारा बताए गए एकांत शैयासन के पंथ पर ही विचार करने योग्य है। ऐसा भाव, ऐसा निश्चय एक दिन अवश्य ही वीतरागता प्रकट कराएगा। खंडः२ आत्मजागृति से ब्रह्मचर्य का मार्ग १. विषयी स्पंदन, मात्र जोखिम जैसे-जैसे विषय का स्वरूप पूर्ण रूप से समझ में आता जाए, उसके जोखिमी परवशतामयी परिणाम समझ में आते जाएँ, उससे होनेवाली आत्मिक और अध्यात्मिक हानि अनुभव में आती जाए, तब विषय में से वापस लौटने की तैयारी होती है। फिर जब 'विषय में सुख है' यह अभिप्राय टा, तभी से विषय में से छुटने की भावनाएँ जागती हैं। जब ‘विषय में से खुद को छूटना ही है', ऐसा दृढ़ निश्चय होता है, तब फिर दिशा तय होती है और विषय दोषों के समक्ष छूटने की जागृति बढ़ती जाती है। वह जागृति निरंतर विषय-विकार परिणाम से जूझती रहती है और विषय के एक-एक विचार को उखाड़कर फेंक देती है। अंकुर फूटने से पहले ही प्रत्येक कोंपल को उखाड़कर फेंक दिया जाए, तभी विषयबीज का सर्वांश निर्मूलन होता है। वर्ना यदि अंकूर फूटते ही उखाड़ा नहीं जाए तो फिर काबू में नहीं रहता। फिर उसे बढ़कर वृक्ष बनते देर नहीं लगती और उसके 24
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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