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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) पसंद नहीं हो फिर भी वह क़रार पूरा करना चाहिए न ? जो पसंद नहीं हो वह फिर चिपकता ही नहीं है । अंदर ज़रा पसंद हो तभी चिपकता है । जो पसंद नहीं हो, वह चिपकता भी नहीं और ज़्यादा दिन टिकता भी नहीं है। एक-दो साल में, पाँच सालों में फिर हल आ जाता है । इसलिए हर्ज नहीं है। यदि जागृति रही तो फिर क्या चाहिए आपको ? यह पसंद नहीं है, यह बात निश्चित हो गई । २२२ यह तो क़रारी मामला है, कुदरत के क़रार आपकी सहमति से हुए है। अब उस क़रार का भंग करें, तो चलेगा ही नहीं न ! पुलिसवाला पकड़कर ले जाए, वैसा लगता है ? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : पुलिसवाला पकड़कर ले जाए तो उसमें आपका ज़रा सा भी गुनाह नहीं है। राज़ी - खुशी के सौदे में भूल मानी जाएगी। जब तक स्वरूप का ज्ञान नहीं है, तब तक पुलिसवाला पकड़कर ले जाए, वह भी गुनाह है। उसे जो कर्म पसंद नहीं है, वहाँ उसे 'नापसंदगी' का कर्म बँधता है और यदि कर्म पसंद है तो वहाँ 'पसंदगी' का कर्म बँधता है। 'नापसंद' में द्वेष का कर्म बँधता है, द्वेष के परिणाम होते हैं । जिसे यह 'ज्ञान' नहीं हो, तो उसे क्या होगा ? प्रश्नकर्ता : द्वेष के परिणाम होने से बल्कि कर्म ज़्यादा बँधेंगे न ? दादाश्री : निरा बैर ही बाँधता है । अतः जिसे ज्ञान नहीं है, उसे यदि कुछ पसंद नहीं हो तो भी कर्म बँधता है और पसंद हो तो भी कर्म बँधता है। और 'ज्ञान' हो, तो उसे किसी प्रकार का कर्म नहीं बँधता । 'काम' निकाल लो अतः जहाँ-जहाँ, जिस-जिस दुकान में आपका मन उलझे, उस दुकान के अंदर जो शुद्धात्मा है, वे ही आपको छुड़वा सकते हैं। इसलिए उनसे माँग करना कि 'मुझे इस अब्रह्मचर्य विषय में से मुक्त कीजिए । ' मुक्त होने के लिए यों ही और सभी जगह प्रयत्न करोगे तो वह नहीं चलेगा। उसी दुकान के शुद्धात्मा आपको इस विषय में से छुड़वाएँगे ।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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