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________________ २१० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) जागृति में देखें, गर्भ से बुढ़िया होने तक वीतराग इतना ही देखते थे कि मनुष्य की प्राकृतिक शक्ति का उत्पन्न होना, व्यय होना और वर्तमान शक्ति, उन सभी शक्तियों को त्रिकाल ज्ञान से देखते थे। उत्पन्न, व्यय आदि को संपूर्ण रूप से जानते थे इसलिए फिर उन्हें राग उत्पन्न नहीं होता था। यह राग का उत्पन्न होना, वह तो सिर्फ वर्तमानकाल के ज्ञान से होता है। एक तो खुद के स्वरूप का अज्ञान और वर्तमानकाल का ज्ञान, तब फिर उसे राग उत्पन्न होता है। लेकिन यदि उसे यह समझ में आए कि यह गर्भ में थी तब ऐसी दिखती थी, जन्म हुआ तब ऐसी दिखती थी, छोटी बच्ची थी तब ऐसी दिखती थी, फिर ऐसी दिखती थी, आज ऐसी दिखती है, फिर ऐसी दिखेगी, बूढ़ी होने पर ऐसी दिखेगी, पक्षाघात होगा तब ऐसी दिखेगी, अर्थी उठेगी तब ऐसी दिखेगी, ऐसी सभी अवस्थाएँ जिनके लक्ष्य में है, उन्हें वैराग्य सिखाना नहीं पड़ता! यह तो, आज जो दिखता है, उसे देखकर ही जो मूर्छित हो जाते हैं, उन्हें वैराग्य सीखना है। वीतराग तो बहुत समझदार थे। भले ही कोई भी चीज़ आए लेकिन उन्हें मूर्छा उत्पन्न नहीं करवा सकती थी क्योंकि उस चीज़ को वीतराग तीनों काल से देख सकते थे। यह जो चीज़ है, इसकी क्या-क्या अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं ? मिट्टी में से उत्पन्न हुआ, उसमें से घड़ा बनाया, अब ऐसी अवस्था हुई, ऐसी अवस्था हुई। फिर अब वह विनाश के पथ पर जाएगा, ऐसी सारी अवस्थाएँ बता सकते हैं, आख़िर में फिर से मिट्टी बन जाएगी। प्रश्नकर्ता : उन सभी अवस्थाओं का ज्ञान एक ही बार में रहता है? दादाश्री : एक ही बार में! मैंने वह जो कहा न कि मनुष्य को मोह क्यों उत्पन्न होता है? तब कहे, दोनों जवान हैं इसलिए और उस समय वहाँ पर होश नहीं रहता, कि यह मोह टिकाऊ है या टेम्परेरी है? फिर इस समय जो है, वैसा ही उनकी कल्पना हमेशा के लिए ढूँढती है। अब फिर बुढ़ापे में क्या होता है? कल्पना कैसी हो जाती है?
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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