SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) रखते। लेकिन यह जगत् तो पूरा भय का ही कारखाना है। इसलिए सावधान रहकर चलना। भयंकर कलियुग है। दिनोंदिन ‘डाउन' काल आता जा रहा है। विचार आदि सब बिगड़ते ही जाएँगे। अतः यदि मोक्ष में जाने की बात करोगे, तो शायद कुछ हो सकेगा। कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जो अच्छी मज़ेदार मिठाई या नमकीन देखें, फिर भी उन्हें भाव या अभाव नहीं होता। ऐसे पंद्रह प्रतिशत लोग हैं तो सही। लेकिन ये जो स्त्री-पुरुष हैं, उन्हें तो देखते ही भाव या अभाव उत्पन्न होता है। उनमें से दो प्रतिशत मनुष्यों को छोड़कर, शेष सभी के मन बिगड़े बगैर रहते ही नहीं। यदि चाचा का बेटा हो फिर भी लड़की का मन बिगडता है और चाचा की बेटी हो फिर भी लड़के का मन बिगड़ता है। मिठाई के लिए क्यों नहीं बिगड़ता? क्योंकि वहाँ उसे संतोष है। लेकिन विषय में तो असंतोष है न! लेकिन इसमें असंतोष रखने जैसा है ही क्या? ये भी आम ही हैं न? जिसे भोजन में असंतोष है, उसका चित्त खाने की चीज़ों में जाता है और जहाँ होटल देखे, वहाँ खिंचता है, लेकिन क्या सिर्फ भोजन का ही विषय है? यह तो पाँच इन्द्रिय और उसमें कितने ही विषय हैं। जिसे भोजन से असंतोष हो, उसका चित्त खाने की चीज़ों में चिपक जाता है। उसी तरह जिसे देखने में असंतोष हो, वह यहाँ-तहाँ नज़र घुमाता रहता है। पुरुष को स्त्री का असंतोष रहता है और स्त्री को पुरुष का असंतोष रहता है इसलिए फिर चित्त वहीं चिपकता है। इसे भगवान ने मोह कहा है। देखते ही चिपक जाता है। स्त्री देखी कि चित्त चिपक जाता है। ये लोग क्या सीधे रहते होंगे? यह तो कहीं पर भी सुख नहीं मिलता इसलिए व्यर्थ प्रयत्न में लगे हैं। शायद ही कोई पुण्यशाली होगा, जो व्यर्थ प्रयत्न में नहीं लगा होता। तब फिर वह लोभ में पड़ा होता है। कोई व्यक्ति बहुत भूखा हो, तो क्या वह कपड़े की दुकान की ओर देखेगा? नहीं, वह तो मिठाई की दुकान देखेगा, या फिर होटल देखेगा। जब देह की भूख नहीं होती, तब मन की भूख खड़ी होती है। जब ये दोनों भूख नहीं होतीं, तब वाणी की भूख खड़ी होती है। लोग ऐसा कहते हैं न, कि 'उसे तो मैं सुनाए बगैर छोडूंगा ही नहीं?' वही वाणी की भूख।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy