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________________ चारित्र का प्रभाव १८१ दादाश्री : अंग्रेज़ी में तो ये दो ही शब्द कह दिए जाएँ, तो सब अच्छी तरह से समझ में आ जाएगा। शीलवाले को स्त्री का विचार तक नहीं आता, विषय का विचार आया यानी शील कच्चा है अभी। लेकिन फिर भी जिसे विचार आते हैं, उसके लिए कहते हैं कि, 'भैया, उसका ऐसा है। ये विचार थोड़े समय में चले जाएँगे और वह शीलवान ही है!' आप कॉज़ेज़ को कार्य कहते हो। कईबार कॉज़ेज़ को कार्य कहते हैं, मतलब क्या? यदि ये भाई कहें कि, 'मैं यहाँ से अहमदाबाद जा रहा हूँ।' तो जब वह यहाँ से निकले, तब कोई पूछे कि, 'वह भाई कहाँ गया? तब कहेगा, 'वह तो अहमदाबाद गया।' अब वह बात फेक्ट है क्या? फिर भी 'वह अहमदाबाद गया' ऐसा कहते हो या नहीं कहते? इस संसार का नियम ही ऐसा है, अपना व्यवहार ही ऐसा है कि वह अहमदाबाद गया।' तो क्या यह कुछ गलत, यह व्यवहार कुछ गलत है क्या? तब कहे, 'नहीं। गलत कैसे कह सकते हैं?' क्योंकि लोग कारण का कार्य में आरोपण करते हैं। वह अहमदाबाद जा रहा है, अर्थात् अहमदाबाद जानेवाला है, इसलिए 'वह अहमदाबाद गया', ऐसा कहते हैं। इसी तरह इसमें भी शील में कुछ खराब विचार आते हों, फिर भी, क्योंकि वह शील प्राप्त करनेवाला है इसलिए हम उसमें कार्य का आरोपण करते हैं। प्रश्नकर्ता : यह शील एक ऐसी चीज़ है कि उसमें बहुत सारे अच्छे-अच्छे गुणों का समावेश होता है और सभी, उन सभी के मिलने से गुणों का जो समूह बनता है, वह शील कहलाता है। दादाश्री : यह शील तो बहुत ही, महान गुण है। जिसकी किसी के साथ तुलना नहीं की जा सकती, ऐसा गुण है ! किसी-किसी काल में ऐसे दो-चार-पाँच ही लोग होते हैं, लेकिन अभी तो उनका अभाव है। शील हो तो साँप नहीं डसता "शीले सर्प न आभडे, शीले शीतल आग, शीले अरि, करी, केसरी, सब जावे भाग"
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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