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________________ १७२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) आप ही विषय तो छूट ही जाएगा न? तो जीते जी करो तो क्या बुरा है? मार-पीटकर कुदरत करवाए, उसके बजाय जीते जी आप खुद करोगे तो छूट जाओगे इसमें से! इस विषय का कर्म उसने रोका, उसके बदले दूसरा कर्म बँधा वापस। भले ही वह सहजभाव नहीं कहा जाएगा! यानी दूसरा कर्जा खड़ा किया। यह दूसरा कर्ज़ तो अच्छा है, लेकिन विषय का कर्ज तो बहुत ही गलत है! विषय का विचार आते ही तुरंत प्रतिक्रमण करना। प्रतिक्रमण होता है न तुझ से? तेरी खुद की इसमें बिल्कुल इच्छा ही नहीं है न? अंदर थोड़ी बहुत इच्छा रहती है कि 'व्यवस्थित है' वगैरह, इस तरह पोल (जानबूझकर दुरुपयोग करना, लापरवाही) रखता है क्या? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : बाकी पोल रखता है। 'व्यवस्थित है' न, ऐसा कहता है! पोल मारनी हो तो चला सकता है न? पोल मारने में तो बहुत जोखिम है न? वह तो नर्कगति में ले जाएगा। इसलिए हम सावधान करते हैं!
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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