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________________ आलोचना से ही जोखिम टले व्रतभंग के अहंकार करके भी तोड़ देना चाहिए। दो-चार जनों से मैंने इस प्रकार से तुड़वा दिया था ! अहंकार करके, तहस-नहस कर देते हैं ! फिर जो अहंकार किया, उसका कर्म बँधे तो भले ही बँधे, लेकिन वह सारा विषय तो खत्म कर देगा न? ये सारे कर्म ऐसे हैं कि एक के बजाय दूसरा दो तो उसके एवज में छूट जाते हैं। सिर्फ विषय ही ऐसा है कि अहंकार करके भी छूट जाना चाहिए, वर्ना यह विषय तो मार ही डालेगा ! १७१ पुराने समय में चारित्र स्थिरता आज जैसी नहीं थी। आज तो ये लोग अभान हैं। यह तो, यदि ज्ञान लेने के बाद भी विषय की आराधना होगी तो क्या होगा? सत्संग को दगा दिया और ज्ञानी को भी दगा किया, तो फिर यहाँ से सीधे नर्क में जाएगा । यहाँ पर (ज्ञान लेने के बाद) ज़्यादा दंड मिलता है, इसका क्या कारण होगा ? प्रश्नकर्ता : ज़िम्मेदारी है न ? दादाश्री : नहीं, इस सत्संग को दगा दिया, ज्ञानी को दगा दिया। बड़ा दगाबाज़ कहा जाएगा। ऐसा तो होता होगा ? क्या खुद ऐसा नहीं समझता कि यह गलत है ? यह तो जान-बूझकर चला लेते हैं कि कोई हर्ज नहीं, वर्ना ‘समभाव से निकाल' का दुरुपयोग करता है या फिर 'व्यवस्थित है' करके दुरुपयोग करता है । ऐसा सब आपने नहीं सुना था न, पहले ? प्रश्नकर्ता: ऐसा तो नहीं सुना था । दादाश्री : अब आपको सब लक्ष्य में रहेगा या छूट जाएगा? आपमें ऐसा नहीं होना चाहिए । यह तो मुँह भी नहीं दिखा सकें, ऐसी चीज़ हो जाती है। शोभा नहीं देता आपको । अहंकार से जितना किया उतना कर्म बँध जाता है, कि कितना 'ऑवरड्राफ्ट' लिया। लेकिन 'विषय तो चाहिए ही नहीं', ऐसा होना चाहिए। जो बाहर विषय का आराधना करता हो उसे तो, खुद की पत्नी-बेटी कहीं भी जाए तो एतराज़ नहीं होता । तो फिर उसे नंगा ही कहेंगे न? उसके लिए चारित्र की क़ीमत ही नहीं है न! 1 अब सारा सेट कर दो। आख़िर में यदि कल देह छूट जाए, तो अपने
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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