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________________ १६६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) दादाश्री : मतलब चोर नीयत है। नीयत ही गलत थी! और विषय ऐसी चीज़ है कि वहाँ पर एक्सेप्शन (अपवाद) है ही नहीं। यह तो आपमें पाँच आज्ञा पालन करने की शक्ति ही नहीं है। यदि पाँच आज्ञा पालन करनी हो तो भी मैं ‘एक्सेप्शन' नहीं दूंगा किसी को भी। क्योंकि यह विषय तो आपको न जाने कहाँ तक स्लिप करके (फिसलाकर) खत्म कर देगा। अत: यदि सिर्फ एक इसी विषय को पार कर गया तो पूरा हो गया, उसकी सेफसाइड हो जाए! हमारी आज्ञा में रहोगे तो आपको सहज ही कृपा मिलेगी। दादा को कुछ लेना नहीं है और देना भी नहीं है। आप आज्ञा में रहोगे, तो हम समझेंगे कि इन लोगों ने आज्ञा में रहकर ज्ञान रोशन किया! कोई आदमी पाँच-सात दिन से भूखा हो, तो वह लड़ने जाएगा क्या? नहीं। क्यों? उसका मन ठंडा पड़ जाता है। वैसा ही इस विषय में है मन ठंडा पड़ गया, यानी ठंडा बर्फ! प्रश्नकर्ता : लेकिन दादाजी, जब उपवास करता हूँ उस दिन मुझ से स्कूटर भी ठीक से नहीं उठाया जा सकता, ऐसा लगता है। दादाश्री : यह सब वकालत है। यहाँ पर वकालत नहीं करनी है। यह तो बचाव है। यहाँ बचाव नहीं करना है न? प्रश्नकर्ता : नहीं, यह मैं बचाव नहीं कर रहा हूँ, लेकिन आपके सामने खोल रहा हूँ। दादाश्री : लेकिन यह सब तो बचाव है। यहाँ बचाव नहीं करना है। यहाँ पर कहाँ कोई जेल में डाल देंगे? खुद के मन में ऐसा घुस जाता है कि अब उपवास किया इसलिए ऐसा हो जाएगा, वैसा हो जाएगा, तो वैसा हो जाता है। उपवास तो बहुत शक्ति देता है। यह तो मन तुझे छल रहा है। उल्टी पटरी पर चढ़ा रहा है। यह जो मैंने आपको दिया है, वह इतना अधिक सुखदायी है कि आपको अन्य सुख फीके लगेंगे, यानी अच्छे ही नहीं लगेंगे। इतना अधिक सुखदायी है! परम सुखदायी है, परम सुख का धाम है! अन्य सबकुछ फीका लगता है, अच्छा ही नहीं लगता, बल्कि घिन आती है!
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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