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________________ आलोचना से ही जोखिम टले व्रतभंग के मगदल और मिठाइयाँ देने का मना करता हूँ । अरे ! बच्चों को मगदल नहीं देना चाहिए। ये लोग तो कैसे हैं कि जो बच्चों को मगदल और गोंदपाक आदि देते हैं! उन्हें तो सिर्फ दाल-चावल खिलाने से भी खून बहुत बढ़ जाता है, फिर बच्चों को मिठाइयाँ आदि देंगे तो क्या होगा ? फिर सभी पंद्रह साल की उम्र में ही निरे दोष में पड़ जाते हैं ! फिर खराबी ही हो जाएगी न ? जिससे उत्तेजना हो, ऐसा आहार नहीं देना चाहिए। इन ब्रह्मचारियों को, यदि ऐसा आहार दिया जाए जिससे उत्तेजना हो तो क्या होगा ? मन-वन सब बदल जाएगा ! मन पूरी तरह से आहार पर आधारित है। वह पूरे महल को ज़मीनदोस्त कर देता है ! अतः क्या कहा है कि सभी तरह का आहार लेना, लेकिन हलका लेना । शारीरिक तंदुरस्ती खत्म नहीं होनी चाहिए । १६३ प्रश्नकर्ता : हम विषय में फिसलें उसमें जोखिम तो है, लेकिन उसमें हमारी सत्ता कितनी ? यदि हमें नहीं करना हो, तो उसमें हमारी सत्ता कितनी है ? दादाश्री : पूरी सत्ता है । 'एक्सिडेन्ट' तो कभी-कभार ही होता है, रोज़ नही होता। अतः रोज़ाना जो करते हो, वह खुद की 'विल पावर' से होता है। बाकी 'एक्सिडेन्ट' तो छ:- बारह महीने में एकाध बार होता है और उसे 'व्यवस्थित' कहते हैं । प्रतिदिन 'एक्सिडेन्ट' हो उसे यदि ‘व्यवस्थित' कहोगे तो वह 'व्यवस्थित' का दुरुपयोग हुआ कहा जाएगा। प्रश्नकर्ता : वह 'व्यवस्थित' का दुरुपयोग हुआ कैसे कहा जाएगा ? दादाश्री : उसका दुरुपयोग हो ही जाता है। उल्टी मान्यता मानी इसलिए। उसमें भी आपको छूट दी जाती है कि विचार आएँ और आपकी दृष्टि मलिन हो जाए तो उसमें हर्ज नहीं है; उसे धो डालना और हमारी पाँच आज्ञा का पालन होते रहना चाहिए । यह तो पाँच आज्ञा का पालन नहीं हो पाता, इसलिए मुझे दूसरी ओर का स्क्रू टाइट करना पड़ता है । प्रश्नकर्ता : नहीं, वहाँ भी आज्ञा पालन तो होता है, अलग रहा जाता है।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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