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________________ १६२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) से ऐसा हुआ है। अभी भी तेरे ये विचार बदल जाएँगे। तू अपने आप देखा कर न! पहले तुझे तेरे जो ब्रह्मचर्य से संबंधित विचार 'स्ट्रोंग' लगते थे, तब मुझे मन में लगा कि इसकी यह स्थिति हमेशा रहनेवाली नहीं है, फिर भी रह सके तो उत्तम! शरीर में बदलाव होगा, तब यह वापस इस ओर मुड़ेगा, उसके बाद मुड़ा भी सही। उसके बाद हम समझ गए। इसलिए हम पहले से कुछ कहते ही नहीं हैं न! हम जानते हैं कि यह भला आदमी शरीर के अधीन अपने निश्चय में से बहक रहा है, इसमें उसका दोष नहीं है। इसलिए तो हम कोई उलाहना नहीं देते। बाकी ब्रह्मचर्य के संबंध में विरोधी विचार आना, वह उलाहना देने योग्य है! यानी यह विचार किस के अधीन बदलते रहते हैं, वह सब हमें देखते रहना है। अभी तू कोई भाव मत करना। सब देखता रह कि कैसा 'सेटिंग' होता है! ब्रह्मचर्य से संबंधित तेरे भाव इतनी ऊँचाई तक पहुँचे थे कि लोगों का कल्याण कर डालें, ऐसा था! जिसे ब्रह्मचर्य के विचार आते हों, वह प्रभावशाली कहलाता है! देवता ही कहलाता है! और जिसे अब्रह्मचर्य के विचार आते हों, तो वह साधारण मनुष्य ही माना जाएगा न? पशु से लेकर आम मनुष्य तक के सभी लोगों को अब्रह्मचर्य के विचार आते हैं। अब्रह्मचर्य के विचार, वे खुली पाशवता हैं। जिनमें समझदारी नहीं है, वे अब्रह्मचर्य में पड़ते हैं। तुझे खुद को भी उस दिन यह समझ में आ गया था, लेकिन इस शारीरिक स्थिति ने मन को बदल दिया। तूने समझा कि मेरा मन हिम्मतवाला हो गया होगा, लेकिन मन हिम्मतवाला तभी कहा जाएगा, जब ब्रह्मचर्य सहित हो! जो ब्रह्मचर्य तोड़े, उसे कोई हिम्मतवाला नहीं कह सकता। ब्रह्मचर्य के विचार आना, वह कभी-कभी शरीर पर 'डिपेन्ड' करता है। बीच में तेरे बहुत पुण्य जागे थे कि शरीरिक कमज़ोरी आई! शारीरिक कमजोरी को भगवान ने इस काल में सबसे बड़ा पुण्य कहा है। वह अधोगति में से बच जाता है। ज्ञान नहीं हो, फिर भी वह अधोगति में से बच जाता है। लेकिन यदि शरीर मज़बूत हुआ, तो फिर तालाब फटता है। उस वक्त देख लो फिर! इसलिए इन छोटे बच्चों को बहुत
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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