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________________ में सुख है' ऐसा अनादि का अभ्यास तो तभी छूटेगा, जब उस सुख से बेहतर, आत्मसुख को चखेगा। तब चित्तवृत्ति बाहर विषय में सुख खोजना बंद कर देगी और निजघर में वापस आकर निजसुख में लीन हो जाएगी। वह आत्मसुख, आत्मा का स्पष्टवेदन ‘स्वरूप ज्ञानप्राप्ति' के बाद क्यों रुका हुआ है ? स्वयं क्रियाकारी विज्ञान प्राप्त होने के बावजूद आत्मा की अनंत समाधि का अनुभव क्यों रुका हुआ है? सिर्फ विषय दोष के कारण ही। सिर्फ यदि विषय पर काबू आ जाए तो सारे अंतराय दूर हो जाएँ। 'ज्ञानीपुरुष' विवाहितों को ऐसे प्रयोग बता देते हैं कि 'स्पष्टवेदन' तक के सारे अंतराय टूट जाएँ। जब तक पुद्गल में से कुछ भी सुख प्राप्त करने की नीयत रही हुई है, तब तक आत्मसुख का स्पर्श संभव नहीं है और जब विषय में से सुख प्राप्त करना बिल्कुल बंद हो जाए, तब आत्मसुख का स्पष्टवेदन अनुभव में आता है। यह आत्मा का ही सुख है' ऐसे स्पष्टवेदन के अनुभव के लिए, विवाहितों को कम से कम छ: महीनों के लिए विषय बंद करना ज़रूरी है और उसके लिए 'ज्ञानीपुरुष' से छः महीने की व्रतविधि' करवा लेनी चाहिए। छ: महीने आज्ञापूर्वक विषय बंद हो जाए, तो वे वृत्तियाँ जो विषय के प्रति झुकी हुई थीं, उन्हें स्वसुख की ओर मुड़ने का अवकाश प्राप्त होता है और एकबार स्वसुख चखने के बाद वृत्तियाँ विषय की ओर से वापस मुड़ जाती हैं। लेकिन क्या वृत्तियों को ऐसा अवकाश कभी मिला है? किस जन्म में विषय भोग नहीं किया? ९. लेना व्रत का ट्रायल आत्मज्ञान के बाद आत्मा के सुख का स्पष्ट रूप से अनुभव करना हो तो ब्रह्मचर्य आवश्यक है। सुख विषय का है या आत्मा का है? उन दोनों के बीच डिमार्केशन हो पाएगा। मिलावटी सुख नहीं चलेगा। ग्रहस्थ जीवन में भी ब्रह्मचर्य का पालन हो सकता है। दोनों समझकर ज्ञानी से व्रत ग्रहण कर लें, तो क्या नहीं हो सकता? इस जन्म में ब्रह्मचर्य की भावना करते रहें तो अगले जन्म में सहज रूप से ब्रह्मचर्य का पालन हो सकेगा। भावना, वह बीज है और अमल, वह परिणाम है। 19
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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