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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) यह तो हमने बहुत बार कहा हुआ है लेकिन क्या हो सकता है इसका ? हम आपको बार-बार सावधान करते रहते हैं, लेकिन सँभलना उतना आसान नहीं है न ! फिर भी यों ही प्रयोग करें न कि महीने में तीन दिन या, पाँच दिन और यदि एक सप्ताह के लिए करो तब तो खुद को अच्छी तरह पता चल जाएगा। सप्ताह के बीचवाले दिन तो इतना अधिक आनंद आएगा! आत्मा का सुख और स्वाद आएगा, कैसा सुख है वह ! १४६ नियम में आ जाए तो भी बहुत हो गया खाना खाने को बिठाने के बाद चावल आने में ज़रा देर हो जाए तो क्या होगा ? दाल में हाथ नहीं डाले तो सब्ज़ी में डालेगा, चटनी में डालेगा। नियम में नहीं रह पाता और जिन्हें इस नियम में रहना आ गया, उनका कल्याण हो जाएगा ! हम उपवास नहीं करते, लेकिन नियम में रह सकते हैं कि भाई इतना ही खाना है, फिर बंद । अब वे बनाकर लाते हैं ढोकले, हमें भाते हैं, जितना खाया उससे चार गुना खा सकते हैं, भाते भी हैं, लेकिन 'नहीं'। प्रश्नकर्ता : तो वह नियम जागृति के आधार पर रहता है ? दादाश्री : जागृति तो होती ही है सभी को, लेकिन अंदर वह जो कि स्वाद से रंग चुका है न, वहाँ कंट्रोल नहीं रह सकता। मुश्किल है कंट्रोल में रहना । वह खुद जितना आत्मारूप होता जाएगा उतना कंट्रोल आता जाएगा। कुछ लोग कहते हैं, ‘यों मुझसे विषय नहीं छूट पाएगा।' मैं कहता हूँ, ‘इसके लिए क्यों पागलपन कर रहा है, थोड़ा-थोड़ा नियम ले न! उस नियम में, फिर नियम छोड़ना नहीं।' इस काल में नियम नहीं ले, वह तो चलेगा ही नहीं न ! थोड़े होल (hole) तो रखने ही पड़ेंगे। नहीं रखने पड़ेंगे ? प्रश्नकर्ता : रखने पड़ेंगे। दादाश्री : ब्लेक होल कहते हैं न, उन्हें । यों तो, निरा सच्चा बनकर
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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