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________________ ब्रह्मचर्य का मूल्य, स्पष्टवेदन - आत्मसुख १४१ लेना। भावना की है तो समय आने पर उदय अपने आप आकर खड़ा रहेगा ही! इसलिए हम चेतावनी देते हैं कि इस ढलान पर चढ़ना हो तो यह रास्ता है, वर्ना वह ढलान तो है ही भाई! और इस ढलान पर चढ़ना हो तो लोगों का काम भी निकल जाए ऐसा है! क्योंकि ब्रह्मचर्यव्रत के बिना कभी कुछ हो पाए, ऐसा नहीं है। जगत् का कल्याण होने में ब्रह्मचर्यव्रत के बिना कुछ भी नहीं हो सकता, बाकी खुद का कल्याण कर सकते हैं। अतः यह ब्रह्मचर्यव्रत तो सबसे बड़ा व्रत है। बिना ब्रह्मचर्य के नहीं है पूर्णाहुति जिसे संपूर्ण होना है, उन्हें तो विषय होना ही नहीं चाहिए और वह भी ऐसा नियम नहीं है। वह तो अंतिम जन्म में अंतिम पंद्रह सालों के लिए छूट जाए तो काफी है। कई जन्मों-जन्म इसकी कसरत करने की ज़रूरत नहीं है या त्याग लेने की भी ज़रूरत नहीं है। त्याग ऐसा सहज होना चाहिए कि अपनेआप ही छूट जाए! नियाणां (अपना सारा पुण्य लगाकर किसी एक चीज़ की कामना करना) ऐसा रखना कि मोक्ष में जाने तक जो दो-चार जन्म हों, वे बिना शादीवाले हों तो अच्छा। उस जैसा कुछ भी नहीं है। नियाणां ही ऐसा करना। फिर जो होगा वह देख लेंगे! और यदि यह एक बोझ गया न, तो सारे बोझ गए! यह एक है तो सबकुछ यह ज्ञान लिया तो दादा के प्रताप से स्वच्छंद रुक गया! इसलिए इन महात्माओं के लिए अवश्य ही मोक्ष का साधन हो गया है। लेकिन फिर यह एक झंझट कच्ची रह जाती है! कई तो शादीशुदा हैं न, वे ये सब बातचीत सुनकर इसका जोखिम समझ गए! अत: फिर वृत्तियाँ मोड़ लेते हैं। ज्ञानीपुरुष की दी गई आज्ञा का पालन करे तो ज़बरदस्त नूर उत्पन्न होगा। आज्ञा-पालन में जितना सच्चा दिल और जितना सच्चा उल्लास होगा उतना फल मिलेगा। व्रत की आज्ञा पालो तब हमें खुद साथ में रहना पड़ता है। इस आज्ञा में तो हमारा वचनबल, चारित्रबल उपयोग में आता है।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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