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________________ विषय वह पाशवता ही १२१ वर्ना मनुष्य में विषय नहीं होता, वह भी उच्च जातियों में! निम्न जाति में होता है, जहाँ मेहनत-मजदूरी करनी होती है, जहाँ त्रास है, वहाँ होता है। उच्च जातियों में तो संयम होना चाहिए। विषय का विचार ही नहीं आना चाहिए। जब तक पाशवता है, तब तक विषय के विचार आए बगैर नहीं रहते। मनुष्य में पशुता है, तब तक विचार आते हैं। पशुता गई कि विचार चला जाएगा। ब्रह्मचर्यवालों को तो जहाँ देखो, वहाँ उन्हें ब्रह्मचर्य ही रहता है, विषय से संबंधित विचार ही नहीं आता। ब्रह्मचर्य में आया यानी देवस्थिति में आया। मनुष्यों में देवता! क्योंकि पाशवता गई। पाशवता जाने पर देवता जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जब तक ब्रह्मचर्य नहीं आया, तब तक पाशवता है, छोटे प्रकार की। मनुष्यों में ही पाशवता है। विषय गया तो शीलवान कहलाएगा। इसलिए यह व्यवस्था की गई, लेकिन उसका तो सारा अर्थ ही बिगड़ गया। यदि एक ही पुत्रदान किया हो (उतना ही विषय हो) तो उसका जो प्रेम है वह पूरी जिंदगी टिकता है, अप-डाउन हुए बिना! इन लोगों के भी एक पुत्र और एक पुत्री दो ही होते हैं। लेकिन इन लोगों ने तो ऑपरेशन नाम का एक थियेटर ही खोल दिया है। उस थियेटर में ही खेलते रहते हैं। इसलिए ऋषि-मुनियों में फिर लड़ाई-झगड़े कुछ नहीं होते थे, मित्रता। मित्र की तरह रहते थे और पुत्र-पुत्री का लालनपालन करते थे। और इनके लिए तो हमेशा विषय ही। अब हमेशा रहनेवाले विषय में क्या झंझट होता है ? कि एक को भूख लगी है और दूसरे को नहीं। जिसे नहीं लगी है, वह कहती है कि मुझे नहीं जमेगा। अब दूसरा कहेगा, मुझे भूख लगी है, चला लड़ाई-झगड़ा। ये ही लड़ाई-झगड़े हैं सारे। वर्ना जिंदगीभर मित्रतापूर्वक इतना सुंदर रहे! एक-दूसरे के प्रति सिन्सियर रहेंगे। पूरे दिन कोई क्लेश नहीं, किच-किच नहीं। सारी किच-किच विषय के कारण है।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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