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________________ विषय वह पाशवता ही विषय तो जानवरों की 'कोड लैग्वेज' (सांकेतिक भाषा) है, पाशवता है, 'फुल्ली' (पूर्ण) पाशवता है । अतः वह तो होनी ही नहीं चाहिए। ११५ प्रश्नकर्ता : विषयदोष से जो कर्मबंधन होता है, उसका स्वरूप कैसा होता है ? दादाश्री : जानवर के स्वरूप का । विषयपद ही जानवर पद है। पहले तो हिन्दुस्तान में निर्विषयी विषय था । यानी एक पुत्रदान तक का ही विषय था। अतः यह मोह है, अभानता है । यह तो हम बात कर रहे हैं, वर्ना ऐसी बात कोई करेगा नहीं न ? ऐसा कहें तभी तो वैराग्य उत्पन्न होगा न लोगों में ! प्रश्नकर्ता : वैराग्य टिके ऐसा कोई नियम है ? दादाश्री : वैराग्य टिके तब तो काम ही निकल ले। बिना विचार के वैराग्य नहीं टिक सकता । निरंतर विचारशील हो उसी का वैराग्य टिकता है। कहता है, 'मैं भोग रहा हूँ', 'अरे ! इसमें क्या भोगने जैसा है ?' जानवरों को भी शर्म आती है इसमें तो ! भोगने से ही यह सब भूल जाता है फिर । कर्ता-भोक्ता हुआ कि सारा उपदेश ही भूल जाता है । कर्ता - भोक्ता नहीं हुआ तो सारा उपदेश उसे ध्यान में रहता है । तभी वैराग्य टिकेगा न ? वर्ना वैराग्य टिकेगा ही नहीं न ! पूरी दुनिया ब्रह्मचर्य को एक्सेप्ट करती है। फिर जिनसे ब्रह्मचर्य पालन नहीं किया जा सकता, वह अलग बात है । अब्रह्मचर्य तो मनुष्य में रही हुई पाशवता है। हर एक जगह पर अब्रह्मचर्य को पाशवता माना गया है। इसलिए तो दिन में अब्रह्मचर्य के लिए मना किया गया है, क्योंकि वह पाशवी उपचार है । इसीलिए रात को, अंधेरे में, कोई देखे नहीं, जाने नहीं, खुद की आँखें भी नहीं देखें, उस तरह किया जाता है। मनुष्य को तो क्या यह सब शोभा देता है ? इसलिए तो लोगो ने ऐसा रखा है कि विषय का सेवन रात के अँधेरे में ही किया जाना चाहिए। सूर्यनारायण की उपस्थिति में यदि विषय सेवन करोगे तो हार्टफेल के आसार पैदा होंगे।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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