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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) होता तो है लेकिन धीरे-धीरे कम होता जाता है । यह तो, जब तक क्लेश करना ही चाहिए ऐसा मानते हैं, तब तक क्लेश ज़्यादा होता है । हमें क्लेश के पक्षकार नहीं बनना चाहिए । 'क्लेश करना ही नहीं है', ऐसा जिसका निश्चय है, उसके पास कम से कम क्लेश आता है और जहाँ क्लेश है वहाँ भगवान तो खड़े ही नहीं रहते न ! १०० संसार में यदि विषय नहीं होता तो क्लेश होता ही नहीं । विषय है इसलिए क्लेश है, वर्ना क्लेश होता ही नहीं! विषय को यदि एक्ज़ेक्ट न्यायबुद्धि से देखे तो फिर से विषय करने का मनुष्य को मन ही नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : लेकिन विषय चीज़ ही ऐसी है जो न्यायबुद्धि से देखने ही नहीं देता न ! दादाश्री : यह विषय ऐसी चीज़ है कि एकबार अंध हुआ फिर देखने ही नहीं देता। सबसे अधिक अंध यानी लोभांध और उससे दूसरे नंबर पर हो तो विषयांध । प्रश्नकर्ता : लोभांध को ज़्यादा खराब कहा जाता है ? दादाश्री : अरे ! दुनिया में लोभांध की तो बात ही अलग है न! लोभांध तो दुनिया का एक नयी ही तरह का राजा । विषयवाले तो मोक्ष में जाने के लिए प्रयत्न करते हैं, क्योंकि विषयवालों को तो क्लेश होता है न! इसलिए फिर ऊब जाते हैं । जबकि लोभांध को तो क्लेश भी नहीं होता। वह तो खुद की लक्ष्मी के ही पीछे पड़ा रहता है, लक्ष्मी कहीं पर व्यर्थ व्यय नहीं हो रही है न, वही देखता रहता है और उसीमें वह खुश । बेटे-बेटी के घर बच्चे हों फिर भी उसे लक्ष्मी की ही पड़ी होती है । और फिर लक्ष्मी की रक्षा करने के लिए अगला जन्म, वहीं पर साँप बनकर बिगाड़ता है। करो छः महीने के लिए आज़माइश बहुत टेढ़े स्वभाववाली पत्नी मिली हो तो क्या होगा? अधोगति में
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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