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________________ ९८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : यह बताइए न कि कौन सा हिस्सा बंद कर देना चाहिए ? दादाश्री : विकारी विषय बंद कर देना । तो अपने आप ही सब बंद हो जाएगा। उसे लेकर हमेशा यह क्लेश चलता रहता हैं । प्रश्नकर्ता : पहले तो हम ऐसा समझते थे कि घर के कामकाज को लेकर टकराव होता होगा । इसलिए घर के कामों में मदद करने बैठें, फिर भी टकराव | दादाश्री : वे सारे टकराव तो होंगे ही। जब तक यह विकारी चीज़ है, संबंध है तब तक टकराव होंगे। टकराव का मूल यही है । जिसने विषय को जीत लिया, उसे कोई नहीं हरा सकता, कोई उसका नाम भी नहीं दे सकता। ऐसा प्रभाव पड़ता है। प्रश्नकर्ता : विषय को नहीं जीत पाते, इसीलिए तो हम आपकी शरण में आए हैं। दादाश्री : कितने सालों से विषय.... बूढ़े होने आए, फिर भी विषय ? जब देखो तब विषय, विषय और विषय ! प्रश्नकर्ता : विषय बंद करने के बावजूद भी टकराव नहीं टलता, इसलिए तो हम आपके चरणों में आए हैं । दादाश्री : हो ही नहीं सकता । जहाँ विषय बंद है वहाँ मैंने देखा कि जितने - जितने पुरुष मज़बूत मन के हैं, पत्नी तो यों उनके कहे में रहती है। प्रश्नकर्ता : व्यवहार में जो अहम् रहता है कभी, तो उसके कारण चिनगारियाँ बहुत निकलती हैं। दादाश्री : वे चिनगारियाँ अहम् की नहीं होतीं। देखने में वे चिनगारियाँ अहम् की लगती हैं, लेकिन विषय के अधीन होती हैं वे । जब विषय नहीं रहता, तब वे नहीं होतीं । विषय बंद हो जाए, तब वह इतिहास ही बंद हो जाता है। यानी ब्रह्मचर्यव्रत लेकर कोई यदि सालभर रहे तो
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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