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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) नहीं चाहिए, यह संसार नहीं चाहिए। सुख बरते उसके बाद और किसी झंझट में कहाँ पड़े! दादाश्री : हाँ, और गाड़ी वहीं पर जा रही है। सूरत के स्टेशन पर भले ही थोड़ी देर खड़ी रहे, लेकिन बोम्बे सेन्ट्रल की तरफ ही जा रही चलो बहुत अच्छा ! मैं ऐसा पूछू और कोई मुझे अपने अनुभव कहे तो मुझे ज़रा लगे कि नहीं, मेरी मेहनत सफल हुई! मेहनत फले, ऐसी तो आशा रखें न? विषय छूटने के बाद का संबोधन, 'हीराबा' जब से हीराबा के साथ मेरा विषय बंद हुआ होगा, तब से मैं उन्हें 'हीराबा' कहता हूँ। उसके बाद हमें कोई खास अड़चन नहीं आई। पहले जो थी वह विषय के साथ में, सोहबत में तो टकराव होता था थोड़ा-बहुत। लेकिन जब तक विषय का डंक है, तब तक टकराव नहीं जाता। जब वह डंक नहीं रहता, तब जाता है। हमारा खुद का अनुभव बता रहे हैं। यह तो अपना ज्ञान है, इसलिए ठीक है। वर्ना यदि ज्ञान नहीं होता तो डंक ही मारता रहे। तब तो अहंकार होता है न! उसमें अहंकार का एक भाग, भोग होता है कि, 'उसने मुझे भोग लिया' और पुरुष कहता है, 'उसने मुझे भोग लिया।' और अब (ज्ञान के पश्चात्) निकाल करते हैं वे, फिर भी वह 'डिस्चार्ज' किच-किच तो है ही। लेकिन फिर भी हमारे घर तो वह भी नहीं थी, किसी तरह का ऐसा कोई मतभेद नहीं था। विज्ञान तो देखो! जगत् के साथ झगड़े ही बंद हो जाते हैं। पत्नी के साथ तो झगड़े नहीं, लेकिन सारे जगत् के साथ झगड़े बंद हो जाते हैं। यह विज्ञान ही ऐसा है और झगड़े बंद हुए यानी मुक्त हुआ। किसी भी प्रकार का साहजिक हो उसमें हर्ज नहीं है। साहजिक यानी सहमतिपूर्वक। आपको दाढ़ी बनाने का भाव हुआ और नाई आकर खड़ा रहे तो कहना, 'आओ! चलो बैठो भाई!' इस प्रकार से संयोग मिल जाने
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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