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________________ ४६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) ब्रह्मचर्यव्रत लेते हैं। इन भाई ने और इनकी वाइफ ने छोटी उम्र से ब्रह्मचर्य व्रत लिया है। मुंबई में ऐसा कई लोगों ने लिया है। क्योंकि अंदर ग़ज़ब का सुख बर्तता है। इतना सुख बर्तता है कि विषय उन्हें याद ही नहीं आता। प्रश्नकर्ता : देह के साथ जो कर्म चार्ज होकर आए हुए हैं, वे बदल तो नहीं सकते न? दादाश्री : नहीं, कुछ भी नहीं बदल सकता। फिर भी विषय ऐसी चीज़ है न, कि ज्ञानीपुरुष की आज्ञा से सिर्फ इतना ही बदल सकता है। फिर भी यह व्रत सभी को नहीं दे सकते। हमने कुछ ही लोगों को यह दिया है। ज्ञानी की आज्ञा से सबकुछ बदल सकता है। सामनेवाले को सिर्फ निश्चय ही करना है कि कुछ भी हो जाए, लेकिन मुझे यह चाहिए ही नहीं। तो फिर हम उसे आज्ञा दे देते हैं और हमारा वचनबल काम करता है। इसलिए फिर उसका चित्त और कहीं नहीं जाता। ब्रह्मचर्य का यदि कोई पालन करे न, यदि ठेठ तक पार निकल गया न, तो ब्रह्मचर्य तो बहुत बड़ी चीज़ है। यह 'दादाई ज्ञान', 'अक्रम विज्ञान' और साथ-साथ ब्रह्मचर्य वगैरह हो तो फिर उन्हें क्या चाहिए? एक तो यह 'अक्रम विज्ञान' ही ऐसा है कि यदि वह अनुभव कभी विशेष परिणाम पा गया तो वह राजाओं का राजा है। पूरी दुनिया के राजाओं को भी वहाँ नमस्कार करना पड़ेगा! प्रश्नकर्ताः अभी तो पड़ोसी भी नमस्कार नहीं करता! दादाश्री : पड़ोसी कैसे करेगा? जब तक अभी भी पराए खेत में घुस जाता है, तब तक ऐसा कैसे हो पाएगा? आज्ञासहित व्रत ही सही प्रश्नकर्ता : कोई विधवा हो, या विधुर हो, वे ब्रह्मचर्यव्रत
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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